अंतर के प्रसंग समझे, बाहर को समझने की क्षितिज पर मरीचिका सा है, आत्मबोध ब्रह्म से साक्षात्कार है। फिर कोई क्षितिज कोई मरीचिका नहीं। फिर मैं नहीं सिर्फ मैं ही मै हूं, तू ही तू की तुरही गूंजती है भीतर से बाहर। सुनकर देखो कहती है मै हूं ना!!!
सत्य प्रसंग!!!
ओर भी वहीं छोर भी वही
प्रसंग प्रणाम से प्रणव तक सत्य की विजय यात्रा में भाग लें।
Look beyond imperfections
Be 'PRASANG' Be Joyous
रेणु वशिष्ठ
मेरी काया मेरी वेधशाला से
17.11.24
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