Tuesday, March 25, 2025

शत्रुओं के अहसांमन्द् बने।

 





प्रणाम,
आज का प्रसंग,
शत्रुओं के अहसांमन्द् बने।
सहन शीलता, सौम्यता, धैर्य, धीरज बनाये रखना, हर परिस्थिति मे, परंतु कैसे व क्यों?
हर कठिन परिस्थिति हमारी परिक्षा की घडी होती है. कठिन परिस्थिति के उत्पन्न होने पर ही हम धैर्य की उपयोगिता व महता को जान सकते हैं। अपने मे इन सात्विक गुणों की मात्रा को बढ़ाने का अभ्यास कर सकते हैं।
शत्रु कौन है? तामसिक या कहे आसुरिक प्रवृति, स्वयं की या अन्य किसी की।
कठिनाई की परिस्थिति हमारे जीवन मे कौन पैदा करता है? हमारे मित्र या शत्रु? निसंदेह शत्रु और यदि मित्र कठिन परिस्थिति पैदा करते हैं तो वे भी उस समय हमारे शत्रु समान ही लगते है। कभी कभी तो नाते रिश्तेदार भी अपनी तामसिक प्रवृतियों की बौछार हम पर करते हैं।
यदि तमंचे पर तमंचा उठा लिया जाए तो समझ सकते है क्या होगा। तमंचे पर तमंचा दोनो ओर यदि तामसिक प्रवृति का बोलबाला है तो ही उठेगा। यदि एक और सात्विक है और दूसरी ओर तामसिक है तो सात्विक तामसिक के ताप से तप कर और तेज प्राप्त करता है और क्षमा कर ऊर्ध्व गति को प्राप्त करता है। उसे तामसिक प्रवृति वाले की अधोगति देखकर थोड़ी परेशानी होती है कि अनमोल मानव जन्म का मूल्य नहीं समझ रहा। तामसिक प्रवृति वाला स्वयं का ही शत्रु होता है। जो स्वयं का शत्रु हो वह दूसरे का मित्र कैसे हो सकता है?
प्रसंग यह है कि हमे अपने शत्रुओं को हमारा गुरु मानना चाहिए। यदि लोगों ने शत्रुवत व्यवहार न किया होता तो आप करुणा, दया, प्रेम का अभ्यास कहां करते।
अपनी सात्विकता को दृढ़ करना चाहते हैं तो उसके लिए आपके शत्रु का होना अपरिहार्य है क्योंकि शत्रुओ के बिना धैर्य, करुणा, प्रेम, दया का अभ्यास कैसे किया जा सकता है।
मित्रों के प्रति करुणा, दया,प्रेम, स्नेह रखना कोई मुश्किल नही क्योंकि उनके तो सौ खून माफ किये जा सकते हैं परंतु शत्रु की उपस्थिति उसकी वाणी, उसका व्यवहार धैर्य, प्रेम, करुणा, दया सबको उड़न छु कर देता है। यदि आपको कोई पैमाना चाहिए कि सही मे आप मे धैर्य है, प्रेम, करुणा, दया है या नही तो आप शत्रु की उपस्थिति मे कैसा महसूस करते हैं, उससे आपको मालूम चल जायेगा।
हमे शत्रुओं का अहसानमंद होना चाहिए क्योंकि वे हमारे शांत दिमाग को बनाये रखने मे मददगार होंगे। असली अभ्यास शांति या धैर्य का शत्रु की उपस्थिति से ही हो सकता है। सोना तो तप कर ही निखरता है।
स्वधर्म से परम धर्म की यात्रा में मित्र कम शत्रु अधिक मिलेंगे। राम को सुपर्णखा मिली तो कृष्ण को ताड़का, दोनो का उद्धार हुआ। आप भी आपके जीवन में आई ताड़का, सुपर्णखा या महिषासुर का उद्धार करते चलिए।
इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विश्वास कमजोर हो ना हम चले नेक रस्ते पे हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना।
प्रसंग प्रणाम से प्रणव तक सत्य की विजय यात्रा में भाग लें।
सत्यमेव जयते
श्रमेव जयते
Look beyond imperfections
Be 'PRASANG' Be Joyous
रेणु वशिष्ठ
मेरी काया मेरी वेधशाला से
शुक्रवार भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वादशी
30.8.2024

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