Tuesday, March 25, 2025

मैं हूं तो मेरा परिवार है। परिवार है तो मैं हूं।

 


प्रणाम,
आज का प्रसंग,
मैं और मेरा परिवार। मैं हूं तो मेरा परिवार है। परिवार है तो मैं हूं। परिवार बिना अस्तित्व कहां?
करता था विचरण यूं ही, इधर उधर, स्वछंद, खिलंदड़, ज्योति स्वरूप, ना आकार ना प्रकार, निराकार ब्रह्म सा ज्योति अपनी साथ लिए। मिल जाए कोई दीपक कोई बाती तो ज्योत बन अपने प्रकाश से तज दूं अंधकार समस्त। अपनी ज्योत को सघन किया स्थिर हुआ।
इक दीपक एक बाती धरा पर तैयार हुआ जो मेरे तेज को झेल पाता।
दो परिवार मिल ले आए साथ इक दीपक इक बाती। आनंदित परिवार, आनंदित दीपक बाती। प्रेमार्पण की ऊर्जा ने चास दी मेरी ज्योति। ज्योत से ज्योत जग गई। अस्तित्व में आई ज्योत तो निराकार ने आकर ले लिया, आकाश से धरा पर रूप धरा।
ज्योत को मिला परिवार, भाई बहिन का प्यार।जगमग जगमग करते सभी। पिता सूर्य तो माता धरती, भाई मेरे राजकुमार से बुध, बहिने पृथ्वी का रूप अनेक। ग्रह नक्षत्र से सभी चारों ओर मेरे। सौर मंडल सा मेरा परिवार। प्रक्रिया बढ़ती गई। एक सौर मंडल (परिवार)से अनेक बनते गए।सभी के अपने अपने मंडल अपने अपने पथ।
ज्योत सघन होती गई , अस्तित्व को अपनी सघनता के आवरण में ढक लिया। दीपक बाती का रूप ले दूसरे परिवार में विलय हुई, जहां फिर से आस्तित्व बनाना था। माता पिता , भाई बहिन नए मिले। ज्योति स्थिर रही, सत्य प्रकाश से स्वयं प्रकाशित हुई, प्रेम से कर्म करती रही। फिर दीपक फिर बाती ज्योत से ज्योत जगती गई।
ज्योत सदैव जड़ चेतन का खेल खेलती ही रहती है। शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श पंच तत्वों से, पंच कोषों में, सप्त धातुओं में नटराज बन नृत्य करती ज्योत। सत्यम शिवम सुंदरम से साक्षात्कार करती ज्योत।
आज के प्रसंग पर आते हैं:-
हम सभी किसी न किसी परिवार की सिर्फ एक ईकाई है। ना मेरे बिना परिवार है, ना परिवार बिना मैं।
उस ईकाई को हम मैं ही मैं का रूप दें तो अहम है। उस अहम से ज्योति ज्वाला बन भस्म करती है। अहंकार को गला कर रज कण (रेणु) भर अपनी ज्योति कर लें तो आप विराट के साथ एकाकार होने की प्रक्रिया में अग्रसर होने लगते है।
परिवार के सभी सदस्यों मान सम्मान दे। प्रेम करें। आप ज्योति हैं अपने परिवार को प्रकाशित करें। सूर्य तो अपने तेज से सौर परिवार को भस्म नही करता, सभी को प्रकाशित करता है। आत्मज्योति को सूर्य सा तेज दें। प्रकाशित हों व करें।
यदि ज्वाला बनते हैं तो क्या करते है, परिवार का विघटन। पहले खुद टूटते हैं (ये जानते नही) बिखर बिखर कर बड़ा नही हुआ जाता ये समझते नही। ज्योति को ज्वाला बना भवन की दीवारें तोड़ती है, बंद दरवाजों के ताले तोड़ती है। कुछ खुलता नही, अनेक दरवाजे बंद करती है, संकीर्ण होती जाती है। जैसे जैसे ज्योति ज्वाला बनती है श्वास में फुफकार आती है झाड़ फूंक से आस पास की कोमल ज्योतियों को नष्ट करती है। और न जाने क्या क्या? माया जाल रचती है।
हर व्यक्ति की अपनी ज्योति है। व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज, समाज से राष्ट्र, राष्ट्र से विश्व, विश्व से भूमंडल ।
भूमंडल मध्य लोक, मध्य लोक के ऊपर और नीचे सात सात लोक।
उच्च लोक:- भू, भुवस, स्वर, महा, जन, तपस और सत्य।
निम्न लोक:- अतल, प्राण, सुतल, रसातल, तलातल, महातल, पाताल और नर्क (पुराणों और अथर्वेद अनुसार)।
सभी लोको में ज्योत अपने दीपक बाती का चुनाव कर सकती है। हमने भूलोक में अपने परिवार का चुनाव किया है। हम जिस भी परिवार में है हमारा ही चुनाव है।आगे किस लोक में जाना है, अपनी ज्योत को स्थिर करें और विचार करें।
सबसे उच्च लोक सत्य है और सबसे निम्न लोक नर्क।
समय रहते सत्य को साध लें, ना जाने कब आपको अगला लोक/परिवार आपको बुला ले।
राष्ट्र को बचाना है तो परिवार को बचाना होगा। स्वयं को बचाना है तो परिवार को बचाना होगा।
सत्य से प्रेम, प्रेम से कर्म।
सत्यमेव जयते, श्रमेव जयते।
प्रसंग प्रणाम से प्रणव तक सत्य की विजय यात्रा में भाग लें।
Look beyond imperfections
Be 'PRASANG' Be Joyous
रेणु वशिष्ठ
मेरी काया मेरी वेधशाला से
रविवार, कृष्ण पक्ष सप्तमी तिथि
25.8.2024
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