Tuesday, March 25, 2025

 प्रणाम ॐ ॐ ॐ

आज का प्रसंग,
किसी को दोष मत दो कि उसने आपकी सहायता नही की, आपका साथ नही दिया, उसने ये किया होता तो आज ये होता। जैसी परीक्षा आपकी चल रही है वैसी उसकी भी चल रही होती है। वह भी किसी परेशानी में होता है। उसको भी सम्पूर्ण समझ नही होती, वो भी तो आपके साथ जीवन में जूझ ही रहा होता है। सभी अर्धचेतन अवस्था में रहते हैं अधिकतर, कुछ घबराए, कुछ उनींदे। अपने ही विचारों में उलझा हुआ, अपने आस पास के संसार की गुत्थियों को सुलझाने में कैसे समर्थ होगा। अंदर से उलझा हुआ, बाहर भी उलझता चला जाता है। कोई आराम में नहीं है सब दौड़ ही रहे है अपने अपने दायरे में।
किसी को भी सताएं नही, किसी भी रूप में प्रताड़ित ना करें। सताना और प्रताड़ित करना आपकी कमजोरी, कुंठा, कुसंस्कार को प्रदर्शित करता है। अपनी छवि का थोड़ा तो ध्यान रखें।
यदि कोई संस्कारित परिवार का बच्चा अपने परिवार के संस्कारों को व्यवहार में नहीं प्रदर्शित कर रहा तो तुरंत उसकी संगत पर ध्यान देना चाहिए, उसको दोष देने के बजाय। समझे उसका मस्तिष्क तो उसके जीवन में आई बाहरी शक्तियों ने हैक (hack)कर रखा है। पहले तो वह अपने सुसंस्कार के कारण बहरीय शक्तियों की नकारात्मक ऊर्जा का विरोध नहीं कर पाता, फिर तो उनके प्रभाव में आ जाता है।अपनी संवेदनशीलता के कारण वह स्वयं को चोटिल करता चला जाता है। जीवन में से रस खतम हो जाता है। पहले मन शुष्क होता है, फिर तन शुष्क होता है फिर उसका संसार शुष्क व संकीर्ण होता चला जाता है।
प्रसंग है हमारा मस्तिष्क हैक कैसे हो जाता है? हमें पता कैसे चलता है कि hack हो गया?
हैक का अर्थ है बिना अनुमति के एक एक कंप्यूटर की संचित सूचना दूसरे कंप्यूटर द्वारा चोरी करना अथवा हेरा फेरी करना।
हमारा मस्तिष्क कैसे हैक हो जाता है?
मानव तंत्र एक सुप्रीम कंप्यूटर नही तो और क्या है?
सभी एक लैन सिस्टम से जुड़े हुए है और परम चेतना के परम सर्वर से हमेशा जुड़े रहते हैं।
हमारा सूक्ष्म जगत बेतार के तार की तरह है। सीधी सी बात है अंतरिक्ष बाहर भी है और हमारे अंदर भी। बस उसी अंतरिक्ष में हम हैं और वही अंतरिक्ष हमे जोड़े रखता है। उसी के कारण नकारात्मक ऊर्जाएं हमारे मस्तिष्क में अवैध रूप से सैंध लगा लेती हैं और हमारा मस्तिष्क हैक हो जाता है।
कैसे समझे की हमारा मस्तिष्क हैक हो गया है? जब आप ना चाहते हुए भी किसी नकरात्मक व्यक्ति या व्यक्तियों के बारे में आपके दिमाग में बार बार विचार आते रहते हैं।
आपका मस्तिष्क हैक कब होता है?
जब कोई व्यक्ति आपसे ईर्ष्या, द्वेष, जलन रखता है।
आपके मस्तिष्क को वह हैक कैसे करता है?
उसका ईर्ष्या, द्वेष, जलन से भरा मन ही काफी होता है संवेदनशील व्यक्ति के लिए। ईर्ष्यावश व्यक्ति इतना असंवेदनशील हो जाता है कि काली विद्या, टोने टोटके का भी प्रयोग करने से नही चूकता है।
प्रश्न उठता है हैक तो हो गए, अब क्या करें?
यहां पर मेटाकॉग्निशन (metacognition means beyond thinking)का इस्तेमाल करना होगा अर्थात अपने विचारों को देखें, क्या चल रहा है, अपने मस्तिष्क में हो रही हलचल को महसूस करें। विचार यदि व्यक्ति परक हैं और मस्तिष्क में जलन हो रही है, आंखे सिकुड़ रही हैं तो झट से अपने मन, विचारों को देखकर मुस्कराए, आराम मिलेगा। फिर व्यक्ति का विचार छोड़ ईश्वर का नाम स्मरण करें। या कोई सृजन करें, प्रकृति को ध्यान पूर्वक निहारे।
नकारत्मक विचारों को झटकने की बात की जाती है, हम झटक नही सकते , वो पलट कर वापिस आ जाते हैं।
और कुछ नही तो व्यक्ति के विचारों को अपनी श्वास के साथ कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में बाहर निकाल दें। पेड़ उसे अवशोषित कर लेंगे और ऑक्सिजन बनाकर आपको वापिस देंगें, सृजन वही शुरू हो जायेगा। ये सब बहुत त्वरित प्रक्रिया होती है।
साइबर सिक्योरिटी समझ आती है। परंतु हमारी सिक्योरिटी का क्या? संसार तो माया है ही उलझो या सुलझो पसंद आपकी।
एक वर्चुअल सुरक्षा कवच बनाना ही होगा। सत्य से बड़ा कोई सुरक्षा चक्र नही।
सत्यम जयते।
कर्म भी सुरक्षा चक्र का निर्माण करता है।आपकी कर्मेंद्रिय के कर्मशील होने से सूक्ष्म जगत के मैट्रिक्स बदलते है। सत्कर्म करते रहिए।
श्रमेव जयते!!!
प्रसंग प्रणाम से प्रणव तक सत्य की विजय यात्रा में भाग लें।
Look beyond imperfections
Be 'PRASANG' Be Joyous
रेणु वशिष्ठ
मेरी काया मेरी वेधशाला से
शनिवार, कृष्णपक्ष पंचमी तिथि
24.8.2024
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