Tuesday, March 25, 2025

सत्य की सत्य प्रकृति,

 





प्रणाम,

आज का प्रसंग सत्य की सत्य प्रकृति,

सत्य की प्रकृति निराकार , अमूर्त है। उसको किसी विचार या अवधारणा में ढालना, मूर्त रूप देना कठिन है। ये उसी प्रकार है जैसे ईश्वर को जान उसे मूर्ति का ठोस रूप दे देना।
सत्य की प्रकृति को शब्दों में उतारने का एक प्रयास भर है, वाग्देवी अवश्य आज के इस सत्य प्रसंग को शब्द देंगी पूर्ण विश्वास है।
सत्य किसी भी लौकिक, सांसारिक या पार्थिव परिधियों से परे है। सत्य की सत्य प्रकृति कण कण में हर जन में समाई हुई है। आप हैं यह सत्य है ही। फिर भी आप उसे देखने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं। क्योंकि आप जो हैं वो नही होकर बनावटी संसार की रीति नीति में भाग भाग कर भाग लेते हैं।
सत्य इतना सूक्ष्म व अमूर्त है कि जब तक आप शरीर मन बुद्धि अहंकार में अटके हुए हैं तब तक आपकी सत्य प्रकृति अपने होने का आपको आभास हो नही होने देगी।
सत्य प्रकृति आनंद का ही दूसरा नाम मान सकते है। सत्य में हलचल नहीं स्थिरता, ठहराव है। सत्य में घृणा नहीं प्रेम है। आपका सत्य जब देखता है तो सब ही राम समाया का भाव आता है, आपमे। सत्य शिव सुंदर है।
सत्य की प्रकृति को जानना है तो आपके जीवन में सूनापन चाहिए। शिव शब्द से इ की मात्रा हटा देने पर जो बचे वैसा सूनापन। अर्थात शव समान, हां जी, शव समान। शरीर में रहते हुए शरीर का ना रहना, आत्माविहीन शरीर। आत्मा जब परमात्मा से एकाकार हो जाए तो शरीर की परिधि से निकलना ही होगा।
कैसी बात है? सत्य की प्रकृति को जानने के लिए हमने शरीर धारण किया, अब कहते हैं अशरीरी हो जाओ, तब सत्य के दर्शन होंगें। दर्शन तो फिर भी नही होंगें। सत्य का दर्शन (Philosophy) ही ऐसा है जहां सब कुछ होते हुए भी कुछ नही होता। यही जादू है नीली छतरी वाले का।होते हुए भी नही है और नही होते हुए भी है।
सत्य प्रकृति के प्रभास का सिर्फ आभास जिसे होता है वो मूक हो जाता है, संसार उसे मूढ़ कहने लगता है। संसार का क्या, वो तो पगली जीभ है "रहिमन जिव्हा बावरी, कहिगी सरग पाताल। आपू तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल।"
कपाल पर जूत पर जूत लगते रहें तो भी संसारी प्राणी व्यर्थ प्रलापों में पड़ा रहता है। अपनी सत्य प्रकृति में डूबा रहकर भी सत्यबोध नही कर पाता।
सत्यम शिवम सुंदरम की पहली सीढी सत्यम पर भी आप उतर जाते है तो आप का आभामंडल बदलने लगता है। उसे देखते तो सभी हैं, कुछ आपके चेहरे की चमक को सिर्फ आपके शरीर की चमक समझ आपकी आभा (glow) को देखते रह जाते हैं सोचते हैं अच्छा खाते पीते हैं। जबकि सत्यार्थी तो रूखी सूखी खाय के ठंडा पानी पीव देख पराई चूपरी मत ललचावे जीव की स्थिति में होता है।
सही है जड़ में चेतन को चेतन करना दुष्कर है, सरल है तो चेतन में चेतन हों जाएं।
सत्यम - सूक्ष्म है, शिवम सुक्ष्मतर है, सुंदरम - सूक्ष्मतम है।
सुंदरम तक पहुंचने के लिए सत्य पर सतत चलना होगा, मनसा, वाचा, कर्मा सत्यमय होना होगा। जब सत्य की पूर्णता को प्राप्त कर लेंगे अनेक परीक्षाओं से गुजर कर तब शिवम के द्वार में प्रवेश करेंगे। जहां पर शुभता है, भाग्य है, कल्याण है, सर्व मंगल मंगल्ये की पुकार है, जहां सर्वे भवन्तु सुखिन का भाव है, जहां शुद्धता है, जहां शुचिता है, कलमष्ता का नामों निशान नहीं। शिवम की पूर्णता प्राप्त हो जाने पर आप सुंदरम में प्रवेश करते हैं। वहां पर आप है ही नही सिर्फ हरिहर हैं। ठीक ही कहा है संतों ने जहां मैं वहां हरि नही, जहा हरी वहां मैं नहीं।
ये जो भी कुछ लिखा गया है सब अनुभव प्रसूत है। पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर नहीं। अपने भीतर बैठी सत्यात्मा को क्लिक करें तो सत्य ज्ञान स्वत: डाउनलोड हो जायेगा। करके देखें। क्या?
सत्य से प्रेम, प्रेम से कर्म। और क्या?
सत्यमेव जयते!!!
श्रमेव जयते!!!
प्रसंग प्रणाम से प्रणव तक सत्य की विजय यात्रा में भाग लें।
Look beyond imperfections
Be 'PRASANG' Be Joyous
रेणु वशिष्ठ
मेरी काया मेरी वेधशाला से
सोमवार,भाद्र पद कृष्ण पक्ष अष्टमी
26.8.2024

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