लोग चीज़ों से प्रेम करते रहे
और हम लोगों से,
चीजों से प्रेम करने वालों ने लोगों को छोड़ दिया,
और हमने चीजों को।
हम चीजों को सहेजते थे, लोगों में बांटने के लिए,
लोग लोगों को बांटते रहे चीजें समेटने के लिए।
हमारा लोगों के प्रति प्रेम बढ़ता गया,
चीजों के प्रति घटता,
लोगों का प्रेम चीजों के प्रति बढ़ता गया, लोगों के प्रति घटता।
हमने चेतन से किया प्रेम, हम चैतन्य हुए,
लोगों ने जड़ से किया प्रेम , लोग जड़ हो गए।
लोग स्थूल संसार में जड़ गए, हम सूक्ष्म जगत तर गए,
कैसा ये खेल है जड़ चेतन का,
लोग जड़ होकर संसार पा गए,
हम चेतन होकर परमात्मा में छा गए।
चेतन जड़ को पकड़ता नहीं,
जड़ चेतन को पा सकता नहीं।
चकित तो चेतन होता है जानकर सत्य,
जड़ के बिना चेतन हुआ जा सकता नहीं।
यही सत्य है।
सत्यमेव जयते
सदी का महासंदेश :- सत्य से प्रेम, प्रेम से कर्म करें।
प्रसंग प्रणाम से प्रणव तक सत्य की विजय यात्रा में भाग लें।
Look beyond imperfections
Be 'PRASANG' Be Joyous
रेणु वशिष्ठ
मेरी काया मेरी वेधशाला से
4.02.2025
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