Friday, April 10, 2020

तनाव मुक्ति

तनाव मुक्ति
तनाव मुक्ति के लिए आंतरिक  बाहरी संसार के बीच संतुलन बनाना नितांत आश्यक है।
हम सिर्फ अपने बाहरीय वातावरण को ही बनाय रखने में अपना तन मन धन का निवेश करते रहते है।
हमारी आंतरिक दुनिया क्या है, क्यों है, कब से है, कंहा तक है? इस पर निवेश करने की कभी सोचते ही नहीं है। य सोचते है तो चोबीस घंटे में से कुछ मिनट रोज य कभी कभी तो वो भी नहीं।
हम मूल को छोड़ कर ब्याज पर अधिक ध्यान देते हैं। जबकि यह सत्य है कि जब मूल नष्ट हो जाएगा तो ब्याज आना भी बंद हो जाएगा।हमारी गलती भी नहीं है क्योंकि हमे जन्म के साथ ही विकास की प्रक्रिया में मुख्य रूप से बहरीय दुनिया से ही जुड़ना सिखाया जाता है।
ज्ञानेंद्रियां बाहर की ओर से ही ज्ञान अर्जित करती हैं। सिर्फ बाहरी संसार से जुड़े रहने के कारण हमे तनाव होता है। हम नकारात्मकता के सागर में गोते लगाते है।
संतोष नहीं मिलता है यदि मिलता भी है तो क्षणिक सुख प्राप्त होता है।
इसके विपरित यदि हम अपनी आंतरिक दुनिया को भी जाने समझे य अपने आप को भी कुछ जाने जैसे मै को हूं? कहा से आया हूं? क्यों आया हूं?किसने भेजा है? क्यों भेजा है? मेरा स्वरूप क्या है? तो हम आंतरिक व बाहरी वातावरण के साथ एक संतुलन स्थापित कर सकते है व नकारात्मकता में गोते लगाने के बजाय आसानी से खुशहाली को प्राप्त कर सकते है।
हमारा बाहरी वातावरण हमारे आंतरिक वातावरण का प्रतिबिंब होता है। यहां आंतरिक संसार को विचारो से जोड़ती हूं। जैसे विचार होंगे वैसा ही हमारा दृष्टिकोण होगा।
आंतरिक संसार मन, बुद्धि आत्मा से बनता है।
आत्म की प्रकृति है
प्रेम
शांति
आंनद
जो आत्मा की प्रकृति है वहीं हमारी भी होनी चाहिए परन्तु ऐसा नहीं है क्योंकि हमारी ज्ञानेंद्रियां बहारीय संसार से जुड़ी रहती है और मन को विभिन्न इच्छाओं में विचरण करने का मकसद प्रदान करती रहती है।
इस संसार के सागर ने यदि हमको अपनी नैया को पार लगाना है तो खिवैया अपने आत्मा को बनाना होगा जो कि परमात्मा का ही अंश है।
अब बात आती है स्व का विकास कैसे करें? अंदर की ओर बढ़े कैसे? जीवन मूल्यों का विकास करके हमापने आप से जुड़ सकते है।
सत्य में विश्वास करे। सत्यमेव जयते। जो लोग बुद्धि को आत्मा में स्थिर कर सत्य पर चलते है वे कठिन परिस्थितियों में भी मुस्कुराते रहते है।
प्रश्न उठता है कि अंदर कितना रहे? बाहर कितना जुड़े?
पचास प्रतिशत अंदर और पचास प्रतिशत बाहर जुड़े । एक संतुलन स्थापित होगा। बीच में डटे रहे। एक नट की तरह संतुलन बनाने जैसा कार्य है। बीच में ही स्थित रहकर आगे बढ़ना है तो किनारा पा ही जाएंगे। सत्यता की शुद्धता हमे नट के हाथ में पकड़े हुए बांस की तरह सहारा देती है।
सत्य की डगर पर चलने वाले तनाव मुक्त होते हैं।
मानो या ना मानो।



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