प्रणाम,
आज का प्रसंग,
तज धर्म सारे एक मेरी ही शरण को प्राप्त हो मैं मुक्त पापों से करूंगा तू ना चिंता व्याप्त हो(श्री हरि गीता)!
जीवन की हर परिस्थिति सर्वव्याप्त संप्रभु सत्ता का ही कोई ना कोई प्रसंग है। उसके सत्य प्रसंग का बोध हो जाने पर प्राणी सत रज तम से परे हो , गुणातीत सत्ता से स्वसंचालित होने लगता है। या कहे उसमे ईश्वर तत्व इतना प्रवाहित होने लगता है कि उसका स्वधर्म और परमधर्म एक हो जाता है। उसे दुनियादारी समझ आते हुए भी अपने कर्तव्य पथ से च्युत नही करती। सत्य मार्ग पर सहज, सरल निश्चल मार्ग पर आरूढ़ रहता है, ऐसे व्यक्ति ईश्वर नहीं तो और क्या हैं? जिनमे भाव का उतार चढ़ाव नही, जिनमे विचारों की लहरें नही। उनके रोम रोम से प्रेम झलकता है। जिसका अहंकार इतना पिघल गया हो की वो आकाश समान सूना हो गया हो, जिसकी उपस्थिति में सभी सुरक्षित महसूस करते हों। ऐसे दिव्य जन जिनके जीवन में हों वे धन्य होते हैं। परंतु क्या जिनके जीवन में सत्पुरुष होते है वे उन्हें पहचान पाते है?
नही, सभी नही। दिव्यता देखने के लिए दिव्य दृष्टि चाहिए होती है।
अंधकार अंधकार को पहचानता है और प्रकाश प्रकाश को। अहंकारी व्यक्ति कभी भी दिव्य का दर्शन कर ही नही सकता। चाहे दिव्य साक्षात सामने आकर खड़ा हो जाए। अहंकार पत्थर के समान कठोर होता है, पिघलता ही नही। चोट पर चोट मारता है ,चोट मारने से उसे दूसरे को तोड़ने का सुख तो मिलता है(दिव्य के ना तो चोट लगती है न वह टूटता है) परंतु वह यह नहीं समझता कि चोट मारने से स्वयं टूट रहा है। वो बिखरता जाता है परंतु पिघलता नही। अहंकारी हर जगह किरकिरी करके रखता है। मौसम की मार से प्रस्तर भी चटकते है,समय की मार से अहंकार भी चटकते ही हैं आज नही तो कल। प्रकृति स्वयं अपना खेल दिखा ही देती है।
आज का प्रसंग शरणागत होने का है, सत्य की शरणागति।
सत्य से प्रेम, प्रेम से करें कर्म यही शरणागति का मार्ग है जो प्रकाश की ओर प्रशस्त होता है।
सत्यमेव जयते!!
श्रमेव जयते!!!
प्रसंग प्रणाम से प्रणव तक सत्य की विजय यात्रा में भाग लें।
Look beyond imperfections
Be 'PRASANG' Be Joyous World wide Emotional Well Being Movement since 2012
रेणु वशिष्ठ
मेरी काया मेरी वेधशाला से
गुरुवार, भाद्रपद कृष्ण पक्ष तृतीया
22.8.24
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