प्रणाम,
आज का प्रसंग यशो लभस्व'
यश का अर्थ किसी अच्छे काम के करने का श्रेय, बड़ाई, महिमा, प्रशंसा।
कुछ लोगों का मानना है कि सत्कर्म लोग महिमा मंडन के लिए करते है। फिर तो ईश्वर ने भी सृष्टि की रचना की और रचता ही चला जा रहा है शायद इसीलिए हम उसका गुणगान करते हैं और वह प्रसन्न होता है , महिमा मंडित होता है!
प्रश्न उठता है क्या यश के लिए कार्य करना बुरा है?
कतई नहीं। अपनी प्रशंसा सुनकर मनुष्य प्रसन्न होता है और प्रसन्न रहने के लिए ही जीवन में सारे प्रयोजन करता है।
लोकहित कारी, आत्मसुखवर्धक, धर्म कार्य करने से प्रतिष्ठा, आदर, सद्भाव, आशीर्वाद, प्रोत्साहन, प्रशंसा, कीर्ति प्राप्त होती है। किसीको यश तभी मिलता है जब वह निस्वार्थ भाव से कार्य कर अपने मन, वचन, कर्म से दूसरों के मस्तिष्क को खोल सके व हृदय कमल को खिला सके।
यदि स्वार्थवश कार्य करते है तो सामने वाला आपकी कभी प्रशंसा नही कर सकता। यदि प्रशंसा करने से उसकी स्वार्थ सिद्धि हो रही हो तो वह आपकी झूठी प्रशंसा कर सकता है, उसे चापलूसी कह सकते हैं।
निस्वार्थ भाव से स्वधर्म निभाते हुए परम धर्म निभाने हेतु किए गए कार्य करने से प्रतिष्ठा, आदर,सद्भाव,आशीर्वाद,प्रोत्साहन, प्रशंसा, कीर्ति प्राप्त होती ही है।
समय अधिक लगता है, चींटी से ऐरावत बनने की प्रक्रिया समान होती है यशस्वी की यात्रा। चींटी समान निरंतर अथक प्रयास, अभ्यास, मेहनत, परिश्रम करना होता है। पीपीलिका प्रयासों को इंसान की दृष्टि नही देख पाती परंतु परम सत्ता से कुछ भी अनदेखा, अनछुआ नही रहता। उसकी विद्युत तरंगे सदैव आपकी तरंगों को स्कैन करती रहती हैं। आपका QR code आपके आगे के दरवाजे खोलता जाता है, आपको आगे प्रवेश मिलता जाता है। कर्मों का QR code आप हर पल हर क्षण अपडेट करते जाते हैं। कर्म में रत्ती भर भी कमी रही तो QR code के पैटर्न उसी अनुसार बनेंगे। ये कोई धन से खरीदा हवाई टिकट नहीं है जो आपको विमान में बैठने के लिए प्रवेश दिला देगा।
मनसा वाचा कर्मणा निस्वार्थ भाव से कर्म करिए परमधर्म निभाने हेतु, आपके मान , सम्मान, कीर्ति, यश के प्रवेश द्वार स्वत: खुलते जायेंगे, आपके साथ साथ अनेक लोग आपके साथ खिलते जायेंगे।
नीति ग्रंथों में यश की बड़ी महिमा बताई गई है। यशस्वी का जीवन ही जीवन बताया गया है। यश रहित जीवन को निर्जीव की उपमा दी गई है।
यशेच्छा एक आध्यात्मिक भूख है क्या?
हां, हो सकती है। परंतु मेरी वेधशाला में तो इतना ही निरीक्षण , परीक्षण है कि यदि धर्मयुक्त व्यवहार कर स्वधर्म के साथ परमधर्म निभाएं और सर्वे भवन्तु सुखिन का भाव लेकर चलें तो यश प्राप्त करने की आपकी इच्छा रही हो या नहीं (जहां निस्वार्थ कर्म होता है वहां इच्छा कहां होती है, सिर्फ कर्म होता है) आपको यश मिलेगा ही।
हां, परमधर्म निभाना आध्यात्मिक भूख है। वही भूख प्रकृति ने सभी को दी है। यश तो उसका bi product है।
परमधर्म की भूख का भोजन कैसा होना चाहिए ये सभी को समझ नही आता। पेट की भूख को, मन की भूख को शांत करने के चक्कर में आत्मा की भूख पर ध्यान जाना आसान तो नही। आत्मा की भूख को शांत करने के लिए स्वधर्म को जानना समझना निभाना आवश्यक है।
प्रसंग, यही है कि यशेच्छा रखना बुरा नही। हां, अति सर्वत्र वर्जयते।
अपयश से प्राप्त रोष, घृणा, विरोध,एवम दुर्भाव से व्यथित अंत:करण से तो अच्छी ही है यशेच्छा।
ऐसे व्यक्ति जिनकी निंदा होती है बड़े ही दुखी, चिंतित, उदास एवम अशांत देखे जाते हैं।
जिस प्रकार सत्य का विलोम असत्य है, उसी प्रकार यश का विलोम अपयश है। देखना यह है कि हमने कौनसा छोर पकड़ा है।
सत्य का छोर थाम ले।
सत्यमेव जयते!!!
सत्य से प्रेम, प्रेम से कर्म करें।
प्रसंग प्रणाम से प्रणव तक सत्य की विजय यात्रा में भाग लें।
Look beyond imperfections
Be 'PRASANG' Be Joyous
रेणु वशिष्ठ
मेरी काया मेरी वेधशाला से
गुरुवार 5.9.2024
#imbibevalues #buildcharacter #BuildNation #nochildleftout #NoChildLeftBehind #Educationists #teachers #vishvgurubharat #VasudhaivaKutumbakam #teachersday
No comments:
Post a Comment