Tuesday, March 25, 2025

हम धन्य हैं, जो विद्या के सागर में से ज्ञान के मोती निकाल सर्वत्र बिखेरते हैं।

 



प्रिय शिक्षक/शिक्षिकाओं प्रणाम,

आज का प्रसंग आपके लिए,
हम धन्य हैं, जो विद्या के सागर में से ज्ञान के मोती निकाल सर्वत्र बिखेरते हैं।
क्या आप जानते हैं?
जो दिखाई देता है वह पूर्ण का एक चौथाई भाग होता है।तीन चौथाई सर्वदा छुपा हुआ रहता है।
विद्यार्थियों की पूर्ण क्षमताओं को उजागर करने के लिए शिक्षक शिक्षिकाओं को चाहिए कि पहले वे अपनी सत्य की पुकार को सुने स्वयं में सत्य की प्रतिष्ठा कर आत्मज्ञान से तेज , बल प्राप्त करें।
विद्या के सागर में छुपे मोतियों का अटूट भंडार आपके भीतर ही छुपा है। उसे पाने के लिए भीतर गोता लगाना होगा। भीतर से सत्य आपको पुकारता है, सत्य की उस दिव्य पुकार को सुनिए, समझिए कुचेष्टाओं को मिटाकर सत्यानुशीलन के पथ पर बढ़ चलिए। वहीं से आपको दिव्य संरक्षण प्राप्त होगा।
सत्य से प्रेम और प्रेम से कर्म करेंगे तो हमारी मनोभूमि परिष्कृत होगी। परिष्कृत मनोभूमि में आपके भीतर लहरा रहे विचारों के सागर में उठे विचारों पर चिंतन मनन से आलोडन होगा , फिर अक्षर, शब्द रूपी मोतियों की वर्षा आप अपने विद्यार्थियों पर करेंगे। उसी वर्षा की ज्ञान गंगा से विद्यार्थियों में बीज रूप में छुपी हुई क्षमताओं में अंकुरण होने लगेगा, उसे वे धीरे धीरे स्वयं पोषित करने लगेंगे।
करके देखिए अपनी काया को वेधशाला बनाइए। अपने विचारों का निरीक्षण परीक्षण करिए, आत्मविकास के पथ पर चलिए। आत्मा की अमर ज्योति का साक्षात्कार कर जीवन के हर व्यवहार में कार्यरूप दें, एक सार्थक जीवन के अधिकारी बने।
आवश्यकता है, पहले भारत के हर शिक्षक, शिक्षिका को परिष्कृत होने की।
महेश्वर, बृहस्पति, इंद्र, पाणिनी के ज्ञान सागर से यदि मोती लेने हैं तो गोता भीतर ही लगाना होगा।
हमसे है भारत।
"प्रसंग" नवचेतना से जुड़े।
प्रसंग प्रणाम से प्रणव तक सत्य की विजय यात्रा में भाग लें।
Look beyond imperfections
Be 'PRASANG' Be Joyous
रेणु वशिष्ठ
मेरी काया मेरी वेधशाला से
मंगलवार, 13अगस्त 2024

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