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प्रणाम ॐ ॐ ॐ
आज का प्रसंग,
स्वामी विवेकानंद ने कहा था ,"शिक्षा से मनुष्य की संपूर्णता प्रकट होती है तथा धर्म से मनुष्य में छिपी दिव्यता झलकती है।"
प्रसंग है कि शिक्षा तो सभी लेते हैं परंतु क्या सभी शिक्षित होते हैं?
जी हां शिक्षित तो होते हैं, विद्या वान नही होते। अंतर है शिक्षा व विद्या में।
संपूर्ण शिक्षा से क्या तात्पर्य हो सकता है , मेरे हिसाब से मन वचन, कर्म में जिसके शिक्षा झलके विद्या रूप बन। अर्थात शिक्षा को व्यवहार में उतारा जाए। शिक्षा विद्या कब बनती है, जब शिक्षा मनोरंजन के लिए नही आत्मरंजन के लिए हो। आजकल शिक्षकों को कहा जाता है अपने पाठ को रुचिकर बनाया जाए, रुचिकर किसलिए ?क्या कक्षा में बच्चों को मनोरंजन के लिए बुलाया जा रहा है। यदि बच्चों में उत्सुकता जागृत कर दी जाए (वैसे उत्सुक होना मानव प्रकृति है जिसे अधिकतर एक्टिवेट होने ही नही दिया जाता है) दूसरा यदि शिक्षक पाठ को आत्मसात करके आत्मा से पढ़ाए।
जिस प्रकार आग का स्वभाव है जलाना, पानी का स्वभाव है शीतलता देना उसी प्रकार आत्मा का स्वभाव है शुद्धता व शांति देना। यदि शिक्षक आत्मा से आत्मरंजन के लिए पढ़ाए तो बच्चे सही मायने में विद्यार्जन करेंगे। विद्यावान होंगे बच्चे, विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करने को अति आतुर रहेंगे बच्चे।
विवेकानंद जी के उपरोक्त शब्दों में धर्म की भी बात की गई है, "धर्म से मनुष्य में दिव्यता झलकती है"
थोड़ा सा जाने, धर्म अर्थ काम मोक्ष चार पुरुषार्थों की बात हमारे शास्त्रों मे की गई है। धर्म का अर्थ नियम, अनुशासन के रूप में समझ सकते है।प्रकृति धर्म से चलती है, नियम से चलती है।बाल के हजारवें हिस्से बराबर भी प्रकृति अपने नियम अनुशासन से नही डिगती प्रकृति क्योंकि नियमबद्ध रहना उसका धर्म है। कौन प्रशासित करता है प्रकृति को? स्वयं प्रशासित होती है प्रकृति तभी स्वधर्म निभा पाती है।
प्रसंग यह है कि धर्म का पहला पाया छोड़कर मानव अर्थ और काम पर टिक गया है, अर्थ कमा ले और वासना पूरी करने में लगा दे। धर्म और मोक्ष पर शिक्षा मिलती ही नही। शिक्षा प्रणाली का दोष है, क्या करें? आज के so called शिक्षाविद् इस प्रसंग पर कुछ विचार करें, चिंतन मनन करें। मानव प्रकृति को बचाएं पर्यावरण स्वत शुद्ध हो जायेगा। धर्म को अपनाए, नियम अनुशासन को बढ़ाएं, उसमे दंड की कहीं आवश्यकता नहीं। संपूर्ण विकास की बात करें तो आत्मा को इग्नोर ना करें । अपनी आत्मा से बच्चों की आत्मा की आवाज सुने।
आत्मा के स्वभाव शांत और शीतलता को अपना स्वाभाविक स्वभाव बनाएं। आप थक गए होंगे बनावटी स्वभाव झेलते झेलते अब असल पर आ जाएं।
सत्य से प्रेम, प्रेम से करें कर्म।
प्रसंग प्रणाम से प्रणव तक सत्य की विजय यात्रा में भाग लें।
सत्यमेव जयते!!
श्रमेव जयते!!!
Look beyond imperfections
Be 'PRASANG' Be Joyous
रेणु वशिष्ठ
मेरी काया मेरी वेधशाला से
बुधवार , भाद्रपद कृष्ण पक्ष दशमी
28.8.2024
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