Tuesday, March 25, 2025

आज के प्रसंग में देखना नही सुनने पर प्रकाश डालेंगे।

 प्रणाम ॐ ॐ ॐ

आज का प्रसंग,
अंधकार में हम देख नही सकते पर सुन सकते हैं। सुनकर कुछ जान सकते हैं, समझ सकते हैं, अपनी दिशा निर्धारित कर सकते हैं। आवाज किस ओर से आ रही है? किसकी आवाज है? कर्कश ध्वनि है या मधुर, चीत्कार है या प्रेमालाप?
सिर्फ देखने से ही नही सुनकर भी हम सचेत हो सकते हैं। सचेत करती है आवाज, आहट हमे खतरे की जानकारी दे सकती है चारों दिशाओं से।
देख तो हम एक ही तरफ सकते हैं परंतु सुन सब दिशाओं से सकते हैं।
जहां प्रकाश नही होता वहां आंखे भी नही होती। तभी तो कल के प्रसंग में लिखा था अंधकार अंधकार को देखता है और प्रकाश प्रकाश को। चक्षु प्रकाश ही तो हैं।
आज के प्रसंग में देखना नही सुनने पर प्रकाश डालेंगे।
हमारे चेहरे पर उपस्थित ब्रह्मा के चार मुख में से एक है 'श्रोत ' हमारे कान। कान का सीधा संबंध आकाश तत्व से है। आकाश में व्याप्त ध्वनि तरंगों से।
ध्वनि से ही सृष्टि की रचना हुई। ब्रह्मांड में सूर्य/प्रकाश भी ध्वनि से ही आए है। सृष्टि के आरंभ में अंधकार और अंधकार में अ उ म ॐ की ध्वनि। सत्य का आधार ॐ आदि को अनंत से जोड़ने की क्षमता रखता ॐ , परम ध्वनि।
ध्वनि की खूबसूरती है कि एक ही ध्वनि हजारों , लाखों सुनने वालों तक पहुंच जाती है।
अगर सोच कर सोचें तो ध्वनि में कोई वजन नही होता, ना ही आकार। देखो ना पूरा आकाश ध्वनि तरंगों से भरा पड़ा है परंतु हम पर उसका कोई बोझ नहीं। सब ओर ध्वनि तरंगों के होते हुए भी खाली पड़ा आसमान, सब ओर खाली खाली, रिक्त ही रिक्त।
ध्वनि तो शांत, सुकोमल , धीमी तरंग।
यदि ध्वनि में वजन या आकार होता तो जगह घेरती, फिर आप और हम कहां रहते? विचार करें।
प्रसंग तो यही है कि जिस प्रकार ध्वनि से सृष्टि की रचना हुई, ब्रहंड में प्रकाश आया उसी प्रकार हम भी अपने जीवन की , अपने संसार की रचना ध्वनि के माध्यम से कर रहें हैं या नहीं?
अक्षर, अक्षर से शब्द, शब्द से भाव और भाव से कर्म। वैसे आकाश तो हमारे भाव से ही हमारा संसार रचने लगता है, हम कर्म करें या ना करें। अर्थात हम अपने भाव से ही अपने संसार की रचना कर लेते हैं।
हम सभी ब्रह्मा हैं, हम सभी विष्णु हैं, हम सभी महेश है। हम सभी अपने अपने संसार के रचयिता हैं।
आकाश इकतारा, तानपुरा, सीता, सारंगी, बांसुरी आदि वाद्य यंत्र समान।
आप मीरा के समान इकतारा लेकर मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों ना कोई तो आपको प्रभु मिल जायेंगे। यदि तानपुरा ले चार तारों पर सुर साधते हैं, सा लगाते है तो तानसेन या बैजू बावरा सी ध्वनि निकाल प्रकृति को अपने वश में करते है, फिर वह मल्हार से वर्षा हो या दीपक राग से अग्नि प्रज्वलित हो।
गायक यदि सटीक सा साध ले तो छत में भी दरार आ जाए।
प्रसंग तो यही है कि हमने अपनी ध्वनि, शब्द, भाव से अपने संसार की रचना की है, यदि जो संसार रच लिया है और वह पसंद नही आ रहा है तो अपने ऊपर शोध करें।आरंभ से अब तक आपने किन विचारों, शब्दों, भाव को अपनाया है, कर्मों को किया है, सच्चे रहिएगा अपने साथ नव जीवन तभी मिलेगा। देखे कहीं अपने तबले के समान तो आकाश में ध्वनि को थाप नही लगाई है।
यदि समझ आए तो अभी से अपनी वाक शुद्धि करें। वाणी में कोमलता, माधुर्य लेकर आएं। अपनी श्वास को गहरी और धीमी करें।
कृष्ण की बांसुरी में फूंक दे रहे हैं, ऐसा समझे मेरे कृष्ण को कष्ट न दें।
मेरा प्रसंग यही कहना चाहता है कि कृष्ण को बहुत पीड़ा होती है जब उसकी बांसुरी (आकाश तत्व, ध्वनि तरंग) में कोई मधुर फूंक (आपकी श्वास) ना देकर तबले सी चोट करता है। कोमल शब्दों का प्रयोग करके देखो मधुरम मधुर मधुर संसार की रचना कर डालो।
संसार में बहुत प्रयोग करके देख लिए अब अपनी काया में करके देख लो। अपने नाद बिंदु को संभाल लो।
सधे सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा।
सत्य से प्रेम, प्रेम से करें कर्म।
सत्यमेव जयते
प्रसंग प्रणाम से प्रणव तक सत्य की विजय यात्रा में भाग लें।
Look beyond imperfections
Be 'PRASANG' Be Joyous
रेणु वशिष्ठ
मेरी काया मेरी वेधशाला से
शुक्रवार, कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि
23.8.2024
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