प्रिय शिक्षाविद एवम् अभिभावक,
स्वाति श्रृंखला तीस
साल के गहन अध्ययन, निरीक्षण, परीक्षण का परिणाम है। उपयोग
में लाए, बच्चो के हिंदी भाषा पढ़ने- लिखने विकास में योगदान
दें।
ये श्रृंखला बच्चों में हिंदी भाषा पढ़ने-
लिखने का पूर्ण समाधान है। इन पुस्तिकाओं का अवलोकन करने पर लोगों के
अपने - अपने दृष्टिकोण के अनुसार प्रश्न उठना स्वभाविक है। कुछ प्रश्न मेरे सामने
भी आये। जिन्हे मैं यहाँ अपने उत्तर के साथ प्रस्तुत कर रही हूँ। आशा है आप सभी
मेरे विचारों से सहमत होंगें।
धन्यवाद
रेणु वशिष्ठ
उत्तर :- 1. शिक्षको
का अधिकतर समय बच्चो के लिए नोट बुक्स तैयार करने मे चला जाता है, ये अभ्यास
पुस्तिकाएं शिक्षकों का नोट बुक सेट करने के समय को बचाती हैं। जिस समय का उपयोग
वे हर बच्चे से व्यक्तिगत रूप से ध्यान देने, अंतःक्रिया करने में करेंगी।
2. इनमे दिये गए
अभ्यास बच्चे के भाषा विकास के साथ साथ बौद्धिक, मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक विकास
में भी पूर्ण योगदान देते हैं।
3. ये पुस्तिकाएं
व्यापार के उध्येश से नहीं बनाई गयी हैं। ये बच्चों को ईश्वर मान उनकी सेवा के लिए
रची गयीं हैं। विद्या दान को महा दान कहा गया है, बस विशिष्ट उध्येश यही है।
4. हमारी अभ्यास
पुस्तिकाओं में रचा बसा हमारा सेवा का भाव शिक्षक और शिष्य को सीखने सिखाने में
निश्चित ही आनंद देगा।
हम सभी बच्चों को
समान तरीके से लिखना सिखाते हैं फिर भी सभी का हस्त लेखन भिन्न भिन्न क्यों होता
है? जिस प्रकार अंगुष्ठ चिन्ह समान नहीं होते उसी प्रकार हस्ताक्षर भी एक समान
नहीं होते। हर उम्र में भी लिखाई में परिवर्तन आता रहता है। फिर छोटे बच्चों को
चार लाइन, पांच लाइन में लिखने का बंधन क्यों हम थोपते हैं? कनही वर्णों को रेखाओं
में बांधना बच्चों को बोझ तो मालूम नहीं देता?
आप एक निरीक्षण
परीक्षण करके देखें, बच्चे सहज रूप से लिखना किस प्रकार की कॉपियों में सीखते है।
लाइनो में लिखने के
फेर में बच्चो को ना डाले, अक्षर लिखना व पहचानना महत्वपूर्ण है। लाइनों की जोर
जबरदस्ती ना करके सहज में लिखना व लिखे हुए को पढ़ना सिखाएं। जैसे जैसे बच्चे का
शारीरिक व मानसिक विकास होगा लेखन में स्वत: निपुणता आती जाएगी। ये विचार मेरे तीस
साल के अनुभव के परिणाम स्वरूप व्यक्त हुए हैं। विश्वास करने के लिए करके
देखें......
सुनो, सुनाओ,
समझो, खोजो
पहचानो, पढ़ो
रंग भरो, लिखो
बच्चों के हिन्दी
लेखन की सहज सरल अधिगम कार्य पुस्तिकाएं स्वाति श्रृंखला ही उपयोग में लाए.
उत्तर :- आरंभिक कक्षा से,
निज भाषा उन्नति
अहै, सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय की शूल।"
हिंदी कार्य
पुस्तिकाओं की सरल, सरस स्वाति श्रृंखला रेणु वशिष्ठ द्वारा विशेष रुप से तैयार की
गई है प्री प्राइमरी कक्षाओं के लिए।
हिंदी लिखने में दो,
चार, पांच रेखाओं की आवश्यकता कन्हा? हिंदी में तो अक्षर अक्षर , शब्द शब्द का
माथा बांधा ही जाता है। शब्द एक सीध में स्वत: आ जाते हैं।
बच्चे की दुविधा को
समझे जब वो दो, तीन पांच लाइनों को पकड़ने के चक्कर में मुख्य विषय (अक्षर, शब्द
लेखन) से भटक जाता है।
हम बच्चो के लेखन का
प्रशिक्षण देते है, विकास नहीं करते हैं। विकास करे या प्रशिक्षण दे, जरा विचार
करें।
हम बच्चो की मानसिक
क्षमताओं को प्रशिक्षित करना चाहते है या विकास करना चाहते है?
हिंदी के अक्षर,
शब्द कन्ही नहीं भागेंगे। वो माथे से एक लाइन में बंधे रहते हैं।
बच्चे की आंखों व
मस्तिषक के नाप तौल केंद्रों को विकसित करने में मदद करें।
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अंग्रेजी भाषा में
ये बात देखने में नहीं आती |
क, ख, ग, घ, ङ-
कंठव्य कहे गए,
क्योंकि इनके
उच्चारण के समय ध्वनि कंठ से निकलती है। एक बार बोल कर देखिये |
क्योंकि इनके
उच्चारण के समय जीभ तालू से लगती है। एक बार बोल कर देखिये |
क्योंकि इनका
उच्चारण जीभ के मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है।
एक बार बोल कर
देखिये |
क्योंकि इनके
उच्चारण के समय जीभ दांतों से लगती है।
एक बार बोल कर
देखिये |
क्योंकि इनका
उच्चारण ओठों के मिलने पर ही होता है। एक बार बोल कर देखिये ।
इतनी वैज्ञानिकता दुनिया
की किसी भाषा मे नही है |
जैसे पानी से बादल
बनता है और फिर बरसता है...... (Deviated from the point a little, but typing in
a flow.....)
भाषा पर भौगोलिक
परिस्थिति व जलवायु का भी प्रभाव होता है, जैसा की कहा गया है कोस कोस पर बदले
पानी सौ कोस पर भाषा, इसका कारण भौगोलिक स्थिति व जल वायु है.... हर भौगोलिक
स्थिति मे पांच तत्वों का combination बदल जाता है, हमारे शरीर मे भी बाहर की
परिस्थिति के अनुसार पंच तत्वों के संतुलन मे बदलाव आता है. भाषा भी उससे प्रभावित
हुए बिना नही रहती......
अंग्रेजी पश्चिम की
भाषा है वहाँ के मानव तंत्र के लिए उपयुक्त है....
हमारे तंत्र के लिए
हिंदी संस्कृत या कहे लोकल language ही उपयुक्त है विशेषकर 0 से आठ वर्ष के बच्चों
के लिए....
अधिकतर IAS
अधिकारियों का prelims मे माध्यम हिंदी या लोकल भाषा रहता है, main exam मे वो
अंग्रेजी भाषा को आसानी से माध्यम बना लेते हैं..........
बहुत कुछ है हिंदी
भाषा की वैज्ञानिकता सिद्ध करने के लिए...... सभी कुछ लिखा नही जा सकता.
राष्ट्र भाषा हिंदी
अपनाये, स्वस्थ समाज व आत्म निर्भर राष्ट्र के निर्माण मे वागदान कर अपना योगदान
दें.
हिंदी मेरी शान है,
भारत की पहचान है,
नमन करो सब हिंदी
को,
सब भाषाओं की जान
है.
हम प्रसंग वशिष्ठ चैरिटेबल ट्रस्ट मे एक हिंदी प्रचार प्रसार का प्रोजेक्ट
भी चला रहे हैं..
हिंदी प्रचार प्रसार प्रकोष्ठ
Renu Vashistha
Managing Trustee
प्रसंग वशिष्ठ चरिटेबल ट्रस्ट जयपुर
Founder Director
‘Bakhal’ Pre School Curriculum Developers
9460708840
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