Friday, January 6, 2023

स्वाति श्रृंखला हिंदी की कार्य पुस्तिकाएं



प्रिय शिक्षाविद एवम् अभिभावक,

स्वाति श्रृंखला तीस साल के गहन अध्ययन, निरीक्षण, परीक्षण का परिणाम है। उपयोग में लाए, बच्चो के हिंदी भाषा पढ़ने- लिखने विकास में योगदान दें।

ये श्रृंखला बच्चों में हिंदी भाषा पढ़ने- लिखने का पूर्ण समाधान है। इन पुस्तिकाओं का अवलोकन करने पर लोगों के अपने - अपने दृष्टिकोण के अनुसार प्रश्न उठना स्वभाविक है। कुछ प्रश्न मेरे सामने भी आये। जिन्हे मैं यहाँ अपने उत्तर के साथ प्रस्तुत कर रही हूँ। आशा है आप सभी मेरे विचारों से सहमत होंगें। 

धन्यवाद

रेणु वशिष्ठ

 प्रश्न :- स्वाति श्रृंखला अभ्यास पुस्तिकाओं की USP अद्वितीय बिक्री प्रस्ताव क्या है? 

उत्तर :-  1. शिक्षको का अधिकतर समय बच्चो के लिए नोट बुक्स तैयार करने मे चला जाता है, ये अभ्यास पुस्तिकाएं शिक्षकों का नोट बुक सेट करने के समय को बचाती हैं। जिस समय का उपयोग वे हर बच्चे से व्यक्तिगत रूप से ध्यान देने, अंतःक्रिया करने में करेंगी। 

2. इनमे दिये गए अभ्यास बच्चे के भाषा विकास के साथ साथ बौद्धिक, मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक विकास में भी पूर्ण योगदान देते हैं। 

3. ये पुस्तिकाएं व्यापार के उध्येश से नहीं बनाई गयी हैं। ये बच्चों को ईश्वर मान उनकी सेवा के लिए रची गयीं हैं। विद्या दान को महा दान कहा गया है, बस विशिष्ट उध्येश यही है। 

4. हमारी अभ्यास पुस्तिकाओं में रचा बसा हमारा सेवा का भाव शिक्षक और शिष्य को सीखने सिखाने में निश्चित ही आनंद देगा। 

 प्रश्न :- हिंदी भाषा पढ़ना-लिखना सीखने के लिए स्वाति श्रृंखला ही उपयोग में लाए, क्यों? 

 उत्तर :- हिंदी भाषा पढ़ना-लिखना सीखने के लिए स्वाति श्रृंखला ही उपयोग में लाए क्योंकि ये अभ्यास पुस्तिकाएं मेरे तीस साल शिक्षण क्षेत्र में अनुभव का परिणाम हैं। इनका प्रकाशन करने से पूर्व लगभग पांच सौ बच्चों पर इसका pilot project दो स्कूलों में सफलता पूर्वक किया गया था। 

 प्रश्न:-  हम तो पांच लाइन की कॉपी में लिखना सिखाते हैं? आपकी एक लाइन की पुस्तिका का उपयोग क्यों करें? 

 उत्तर :- आओ कुछ विचार करें,

हम सभी बच्चों को समान तरीके से लिखना सिखाते हैं फिर भी सभी का हस्त लेखन भिन्न भिन्न क्यों होता है? जिस प्रकार अंगुष्ठ चिन्ह समान नहीं होते उसी प्रकार हस्ताक्षर भी एक समान नहीं होते। हर उम्र में भी लिखाई में परिवर्तन आता रहता है। फिर छोटे बच्चों को चार लाइन, पांच लाइन में लिखने का बंधन क्यों हम थोपते हैं? कनही वर्णों को रेखाओं में बांधना बच्चों को बोझ तो मालूम नहीं देता?

 अक्षर लिखना महत्तवपूर्ण है कितना छोटा बड़ा लिख रहा है यह महत्वपर्ण नहीं है। कितने सुंदर विचार व्यक्त करता है महत्वपूर्ण है, कितना सुंदर लेखन है महत्वपूर्ण नहीं।

आप एक निरीक्षण परीक्षण करके देखें, बच्चे सहज रूप से लिखना किस प्रकार की कॉपियों में सीखते है।

लाइनो में लिखने के फेर में बच्चो को ना डाले, अक्षर लिखना व पहचानना महत्वपूर्ण है। लाइनों की जोर जबरदस्ती ना करके सहज में लिखना व लिखे हुए को पढ़ना सिखाएं। जैसे जैसे बच्चे का शारीरिक व मानसिक विकास होगा लेखन में स्वत: निपुणता आती जाएगी। ये विचार मेरे तीस साल के अनुभव के परिणाम स्वरूप व्यक्त हुए हैं। विश्वास करने के लिए करके देखें......

सुनो, सुनाओ,

समझो, खोजो

पहचानो, पढ़ो

रंग भरो, लिखो

बच्चों के हिन्दी लेखन की सहज सरल अधिगम कार्य पुस्तिकाएं स्वाति श्रृंखला ही उपयोग में लाए.

 प्रश्न:-  आपकी पुस्तक में font size छोटा है, बच्चे इतना छोटा फॉण्ट नहीं समझ सकते? 

 उत्तर :- एक तीन साल का बच्चा चींटी को भी देख सकता है और हाथी को भी देख सकता है। चींटी को पकड़ सकता है परन्तु हाथी को नहीं। अभिभावक व शिक्षकगण विचार करें, बच्चो के लेखन कौशल को ध्यान में रखते हुए। कितना बड़ा छोटा लिखना है ज्यादा जोर ना डाले लेखन एक जटिल प्रक्रिया है उसे सहज में विकसित होने दे। पांच वर्ष का हो जाने के पश्चात बच्चे को हाथ साधने का अभ्यास दे यदि स्वत विकसित ना हुए हो तो।

 प्रश्न :- आप किस कक्षा से हिंदी लिखना पढ़ना सिखाने का सुझाव देती हैं? 

उत्तर :- आरंभिक कक्षा से,

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय की शूल।"

हिंदी कार्य पुस्तिकाओं की सरल, सरस स्वाति श्रृंखला रेणु वशिष्ठ द्वारा विशेष रुप से तैयार की गई है प्री प्राइमरी कक्षाओं के लिए।

 हिंदी में पांच लाइन की कोपियों में लिखना, बच्चों के लिए दुविधा या सुविधा? विचार करें

 मनुष्य का दिमाग इनोवेटिव है, हर मनुष्य अपनी समझ के अनुसार अपनी परिस्थितियों के अनुसार स्थितियों को सुविधाजनक बनाने की कोशिश करता है। अन्य लोग अपनी व बच्चो की बौद्धिक क्षमताओं, तर्क वितर्क, सुविधा असुविधा का ध्यान रखे बिना अनुसरण करने लगते हैं।

हिंदी लिखने में दो, चार, पांच रेखाओं की आवश्यकता कन्हा? हिंदी में तो अक्षर अक्षर , शब्द शब्द का माथा बांधा ही जाता है। शब्द एक सीध में स्वत: आ जाते हैं।

बच्चे की दुविधा को समझे जब वो दो, तीन पांच लाइनों को पकड़ने के चक्कर में मुख्य विषय (अक्षर, शब्द लेखन) से भटक जाता है।

हम बच्चो के लेखन का प्रशिक्षण देते है, विकास नहीं करते हैं। विकास करे या प्रशिक्षण दे, जरा विचार करें।

हम बच्चो की मानसिक क्षमताओं को प्रशिक्षित करना चाहते है या विकास करना चाहते है?

 हम बात मानसिक विकास की करते है परन्तु हर कदम पर बच्चो को अपनी समझ के अनुसार प्रशिक्षित करते है व उनके स्वत: सहज विकास में बाधा बांए हैं।

 हिंदी को सहज, सरल, क्रमबद्ध ही रहने दे कठिन ना बनाएं। मातृ भाषा है, सहज में ही आनंद देती है । एक लाइन की कॉपियां उपयोग में लाए।

हिंदी के अक्षर, शब्द कन्ही नहीं भागेंगे। वो माथे से एक लाइन में बंधे रहते हैं।

बच्चे की आंखों व मस्तिषक के नाप तौल केंद्रों को विकसित करने में मदद करें।

 

 

 

 

हिंदी भाषा से जुड़ी कुछ ऐसे तथ्य जिनके बारे में अभी तक आपको किसी ने नहीं बताया होगा.

 1. हिन्दी भाषा नहीं, आकाश के गुण ध्वनि को सार्थक रूप देने की कुंजी है. ये विस्तृत अभिव्यक्ति का माध्यम ही नही, हिंदी की हर बिंदी दिमाग को विस्तृत कर आकाश सा विस्तार देने की क्षमता रखती है. अंग्रेजी भी सीखें परंतु अपनी भाषा हिंदी को तिरस्कृत ना करे.  हिंदी का सम्मान, आत्मसम्मान और गौरव की बात है.

 2.हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है और कोई भी अक्षर वैसा क्यूँ है उसके पीछे कुछ कारण है,

अंग्रेजी भाषा में ये बात देखने में नहीं आती |

क, ख, ग, घ, ङ- कंठव्य कहे गए,

क्योंकि इनके उच्चारण के समय  ध्वनि  कंठ से निकलती है। एक बार बोल कर देखिये |

 च, छ, ज, झ,ञ- तालव्य कहे गए,

क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ तालू से लगती है। एक बार बोल कर देखिये |

 ट, ठ, ड, ढ, ण- मूर्धन्य कहे गए,

क्योंकि इनका उच्चारण जीभ के मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है।

एक बार बोल कर देखिये |

 त, थ, द, ध, न- दंतीय कहे गए,

क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ दांतों से लगती है।

एक बार बोल कर देखिये |

 प, फ, ब, भ, म, - ओष्ठ्य कहे गए,

क्योंकि इनका उच्चारण ओठों के मिलने पर ही होता है। एक बार बोल  कर देखिये ।

 हम अपनी भाषा पर गर्व करते हैं ये सही है परन्तु लोगो को इसका कारण भी बताईये |

इतनी वैज्ञानिकता दुनिया की किसी भाषा मे नही है |

 3 सत्य है.... हिंदी व संस्कृत भाषा के स्वर व्यंजन की ध्वनि मानव शरीर रूपी तंत्र के विभिन्न ऊर्जा चक्रो को खोलने के कोड के रूप मे कार्य करते हैं. भाषा सिर्फ communication का माध्यम नही है, बोलते व सोचते समय भाषा एक कुंजी की तरह काम करती है जो अंतर के बंद तालो को खोलती हैं. मंत्र, तंत्र, यंत्र पर विचार करे...... मंत्र ध्वनि भी भाषा ही तो है .... नाद बिंदु से उठी आवाज गगन मे गुंजायमान होती है फिर वही गूंज हमारे जीवन मे घटित होती है.....

जैसे पानी से बादल बनता है और फिर बरसता है...... (Deviated from the point a little, but typing in a flow.....)

भाषा पर भौगोलिक परिस्थिति व जलवायु का भी प्रभाव होता है, जैसा की कहा गया है कोस कोस पर बदले पानी सौ कोस पर भाषा, इसका कारण भौगोलिक स्थिति व जल वायु है.... हर भौगोलिक स्थिति मे पांच तत्वों का combination बदल जाता है, हमारे शरीर मे भी बाहर की परिस्थिति के अनुसार पंच तत्वों के संतुलन मे बदलाव आता है. भाषा भी उससे प्रभावित हुए बिना नही रहती......

अंग्रेजी पश्चिम की भाषा है वहाँ के मानव तंत्र के लिए उपयुक्त है....

हमारे तंत्र के लिए हिंदी संस्कृत या कहे लोकल language ही उपयुक्त है विशेषकर 0 से आठ वर्ष के बच्चों के लिए....

अधिकतर IAS अधिकारियों का prelims मे माध्यम हिंदी या लोकल भाषा रहता है, main exam मे वो अंग्रेजी भाषा को आसानी से माध्यम बना लेते हैं..........

बहुत कुछ है हिंदी भाषा की वैज्ञानिकता सिद्ध करने के लिए...... सभी कुछ लिखा नही जा सकता.

राष्ट्र भाषा हिंदी अपनाये, स्वस्थ समाज व आत्म निर्भर राष्ट्र के निर्माण मे वागदान कर अपना योगदान दें.

हिंदी मेरी शान है,

भारत की पहचान है,

नमन करो सब हिंदी को,

सब भाषाओं की जान है.

हम प्रसंग वशिष्ठ चैरिटेबल ट्रस्ट मे एक हिंदी प्रचार प्रसार का प्रोजेक्ट भी चला रहे हैं..

हिंदी प्रचार प्रसार प्रकोष्ठ

Renu Vashistha

Managing Trustee

प्रसंग वशिष्ठ चरिटेबल ट्रस्ट जयपुर

Founder Director

‘Bakhal’ Pre School Curriculum Developers

9460708840


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