जी यें तो जी ये कैसे?
Take out time for your own life.
जिंदगी कितनी आसान थी जब हम मां की कोमल गोद मे थे. ना किसी बात की फिकर ना चिंता. सुरक्षित अति सुरक्षित. पर उस सुरक्षा के घेरे मे हम प्रसन्न थे क्या?
नही उस क्षण उस नरम अहसास का मान ना कर हम उछल उछल kare, लटक लटक कर नीचे उतर कर अपनी राह चुनना चाहते थे. शायद कुछ नया ढूंढना चाहते थे?
सोचते थे इस गोद से उतरकर जब जमाने मे जायेंगे तो हमे कुछ अधिक सुख आनंद स्वतंत्रता प्राप्त होगी. वो दिन भी आया जब मां ने जाना अब हमे जमीन पर बैठना चाहिए. नरम गोद नरम बिस्तर छूटे. ठंडे गरम फ़र्श पर बैठना अच्छा लगने लगा.
कंफ्यूशियास.... जीवन अति सरल परंतु हम इसे जटिल बना लेते हैं.
ऐसा लगता है जैसे जैसे हम उम्र दराज होते है वैसे वैसे समय पंख लगा कर उड़ने लगता है. दिन सप्ताह महीने साल ऐसे भागते हैं जैसे कोई जेट इंजन लगा हो. क्या कारण है?
मै ही ऐसा सोचती हूँ या आपको भी ऐसा लगता है. शायद लगता ही होगा, प्रकृति ने हमे एकसार ही तो बनाया है.
क्यो होता है ऐसा?
किसलिए होता है, कैसे होता है?
जवाब खोजना आसान तो नही क्योंकि समय की गति मे अंतर इतना तीव्र नही होता. वही सेकेंड, वही मिनिट, वही दिन, सप्ताह, महीने, साल आदि आदि.
घडी की टिक टिक एक ही गति से चलती है. जवाब ढूंढने निकले तो शायद सभी के जवाब अलग अलग होंगे क्योंकि परिस्थितियाँ सभी की अलग अलग हैं तो अनुभव अलग हैं.
अनुभव अलग है तो अभिव्यक्ति अवश्य ही अलग होगी. कहीं कहीं परिस्थिति व अनुभवों मे थोड़ी बहुत समानता हो सकती है परंतु माइंड सेट अलग अलग हो सकता है. खैर होता रहे. दूसरों की दुसरे जाने, हम तो अपनी जाने.
हमे तो लगता है उम्र के साथ जीवन से अपेक्षाएं बहुत हो जाती है. पीछे मुड़कर देखते हैं तो लंबा जीवन रास्ता पार किया. कितना समय बर्बाद कर दिया, उपलब्धि ऐसी कोई खास नही.
अधिकतर अपनी उपलब्धि को लोग कम ही आंकते है क्योंकि स्वयं की तरफ गौर करके कभी देखते नहीं.
समय भागता हुआ इसलिए मालूम देता है क्योंकि हमारे engagements बहुत हो जाते हैं. जो समय पहले सिर्फ मेरे लिए होता था अब अन्य लोगो के साथ बंट गया है.
समय आपके पास उतना ही है परंतु आपका समय बांटने वाले बढ़ गए तो समय की गति क्या करेगी?
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