सहन शीलता, सौम्यता, धैर्य, धीरज बनाये रखना, हर परिस्थिति मे, परंतु कैसे व क्यों?
हर कठिन परिस्थिति हमारी परिक्षा की घडी होती है. कठिन परिस्थिति के उत्पन्न होने पर ही हम धैर्य की उपयोगिता व महता को जान सकते हैं. अपने मे इनकी मात्रा को बढ़ाने का अभ्यास कर सकते हैं.
कठिनाई की परिस्थिति हमारे जीवन मे कौन पैदा करता है?
हमारे मित्र या शत्रु. निसंदेह शत्रु और यदि मित्र कठिन परिस्थिति पैदा करते हैं तो वे भी उस समय हमारे शत्रु समान ही होते है. तो यदि हम सही मायने में कुछ सीखना चाहते हैं तो हमे अपने शत्रुओं को हमारा गुरु मानना चाहिए.
करुणा, दया, प्रेम का यदि अभ्यास करना चाहते हैं तो उसके लिए आपके शत्रु का होना अपरिहार्य है क्योंकि शत्रुओ के बिना धैर्य, करुणा, प्रेम, दया का अभ्यास कैसे किया जा सकता है.
मित्रों के प्रति करुणा, दया,प्रेम, स्नेह रखना कोई मुश्किल नही क्योंकि उनके तो सौ खून माफ किये जा सकते हैं परंतु शत्रु तो आँख में खटकता है उसकी तो उपस्थिति ही आपके धैर्य, प्रेम, करुणा, दया सबको उड़न छु कर देती है. यदि आपको कोई पैमाना चाहिए कि सही मे आप मे धैर्य है, प्रेम, करुणा, दया है या नही तो आप शत्रु की उपस्थिति मे कैसा महसूस करते हैं, उससे आपको मालूम चल जायेगा.
हमे शत्रुओं का अहसनमंद होना चाहिए क्योंकि वे हमारे शांत दिमाग को बनाये रखने मे मददगार होंगे. असली अभ्यास शांति या धैर्य का शत्रु की उपस्थिति से ही हो सकता है.
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