Tuesday, August 2, 2022

कैसे हो रूपांतरण?

 

प्रकृति का नियम है परिवर्तन.

परंतु परिवर्तन को हम स्वीकार कहाँ कर पाते हैं?

 एक ही तरह का कार्य करते करते हमे उसकी आदत हो जाती है. चाहे वह हमारी दिन चर्या हो या खान पान की क्रिया या विचार की प्रक्रिया. एक लकीर पीटते पीटते हम उसमे पूरी तरह जड़ जाते हैं और फिर जड़ होने लगते हैं. फिर उस से ऊब भी होने लगती है.

एक पीढी से दूसरी पीढी मे विचारों की भिन्न ता जाती है. विचारों की भिन्नता का कारण वही जड़ता परिवर्तन को स्वीकार ना करना है.

नई पीढी का उत्साह उमंग तो कुलांचे भरकर ऊँची ऊँची लहर की तरह उपर उठेगा ही. फिर उम्र के एक पड़ाव पर पहुँचकर किसी अंजाने डर या भय के कारण उत्साह उमंग एक उठती लहर रहकर एक समतल मे ठहरा हुआ पानी बनने को मजबूर हो जाता है.

देखा जाए तो आज के परिप्रेक्ष्य मे कुछ रूपांतरण कर पाने की चाहत युवा पीढी की आँखों मे दिखाई देती है.उनकी आंखों मे परिवर्तन लाने का आक्रोश नही. रूपांतरित होने की आकुलता दिखाई देती है.

कैसा रूपांतरण? समानता पाने का हक, विभिन्नताओं से परे हटने की चाहत.

कैसे हो युवा मन के भाव की थाह को पाने का कार्य

 

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