Wednesday, April 23, 2025




 प्रणाम,

अंत में तो अपने प्रेम में पड़ना ही होगा, संसार का प्रेम तो भुलावा है। संसार के प्रेम में कोई दूसरा चाहिए होता है, जहां दो हो गए द्वैत हो गया। द्वैत, मन बुद्धि अहंकार में डोलता है। खंड खंड रहता है, टूटा टूटा। आपस में खंड टकराते हैं । अंत में टूटते टूटते आप एक कण भर रह जाते हैं, वही कण आपका प्रकाश है , उस कण से प्रेम करें , वहीं अद्वैत की साधना शुरू हो जाती है। अखंड मंडलाकार प्रकाशित होता है। फिर कोई दूसरा नहीं होता। आप ही आप होते है, सब ही राम समाया का प्रत्यय दृष्टिगत होगा।
स्वयं से प्रेम करना निस्वार्थ होने की पहली सीढ़ी है। अधिक जानने समझने के लिए सदी के महासंदेश, सत्य से प्रेम, प्रेम से कर्म करें का अनुसरण करें।
सत्यमेव जयते
प्रसंग प्रणाम से प्रणव तक सत्य की विजय यात्रा में भाग लें।
रेणु वशिष्ठ
मेरी काया मेरी वेधशाला से
28.3.2025
नोट:- विचार व्यक्तिगत अनुभव से उद्भूत हैं, जरूरी नहीं शास्त्र सम्मत हों अतः किसी तर्क वितर्क के लिए बाध्य नहीं हैं। यदि किसी को तर्क चाहिए तो अपनी काया को वेधशाला बनाकर अनुभवात्मक निरीक्षण परीक्षण कर अपने उत्तर प्राप्त करें।

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