प्रणाम,
आज का प्रसंग,
पूर्ण से पूर्ण
एक खंड बनाया।
ब्रह्म के गर्भ में पलती,
धरा आकार ले,
साकार हुई।
हृदय आकाश में ब्रह्म के,
विचरने लगी।
ब्रह्म के प्राण से प्राण,
रूप से ले तेज,
रस से जल,
सुगंध से पृथ्वी तत्व लिए।
ब्रह्म के गर्भ में
धरा विचरती रही।
नवाकार लिया ब्रह्म ने,
नामकरण का दिन आया,
धरा को इक नाम दिया,
*"भारत खंड"*
संपूर्ण पृथ्वी का इक नाम
भारत!!!
प्रेम से अनेक नाम से पुकारता
ब्रह्म अपनी सुता को,
कभी भूमि तो कभी
अचला, अनंता, रसा,
विश्वंभरा, स्थिरा, वसुधा,
रत्नगर्भा, जगती, अंबरा,
मही धरनी, मेदिनी।
परंतु धरा को इक नाम ही
अति प्रिय लगा,
*भारत वर्ष* (प्रकाश वर्ष)
जहां ना कोई डर
ना भय,
चहुं दिस
ज्ञान का प्रकाश था।
ज्ञान के प्रकाश में,
प्रकृति के साथ में,
रत्नगर्भा ने,
अपने गर्भ से रत्न निकालने
किए आरंभ,
पेड़, पौधे,
जड़ से आरंभ कर
चेतन मानव तन, मन, धन संग।
चेतन मानव बढ़ता गया,
इधर उधर भटकता,
ना कोई रोक, ना कोई टोक,
पूरी वसुधा बस एक भारत।
खोजता, सीखता, सिखाता,
आत्मसुरक्षा हेतु,
मानव मानव को जोड़ने हेतु,
असभ्य से सभ्य होने हेतु
समूह, परिवार, समाज,
देश रूप में,
एक ओर बढ़ता रहा,
दूसरी ओर घटता गया।
अखंड भारत को खंड खंड
करता गया, करता गया,
वतन, मुल्क, राष्ट्र,
प्रांत, प्रदेश, राज्य,
घर, गेह, भवन।
टूटता गया, टूटता गया,
भारत खंड।
देश टूटा,
समाज टूटा,
समूह टूटा,
परिवार टूटा,
टूट गया अब इंसान।
तन खंडित,
मन खंडित,
धन की क्या बिसात।
अपनी सुता भारत भारती को,
को देख ब्रह्म जरा ना द्रवित हुआ।
प्रसंगवश हृदय में जाग गया,
पूर्ण हृदय में व्याप्त गया,
सत्य पथ पर
सत्याग्रहियों को आरूढ़ किया,
सत्य, प्रेम, कर्म के प्रकाश में,
मानव अब
सत्य से प्रेम, प्रेम से कर्म कर,
बिखरा इंसान अब जुड़ेगा,
टूटा परिवार एक होगा,
एक होगा समाज,
एक राष्ट्र।
संपूर्ण वसुधा,
पूर्ण से पूर्ण
अखंड भारत होगी।
वसुधैव कुटुंबकम्!
धरा मेरा एक परिवार होगी।
मेरे ब्रह्म की अभिलाषा,
तेरे ब्रह्म की अभिलाषा,
अहम ब्रह्मस्मि, तत् त्वं असि।।
श्रमेव जयते!!
सत्यमेव जयते!!!
हमसे है भारत!
प्रसंग प्रणाम से प्रणव तक सत्य की विजय यात्रा में भाग लें।
Look beyond imperfections
Be 'PRASANG' Be Joyous
रेणु वशिष्ठ
मेरी काया मेरी वेधशाला से
शुक्रवार 16.8.24
विचार एक प्रवाह से प्रवाहित हैं किसी प्रकार के तर्क वितर्क कुतर्क के लिए बाध्य नहीं। जो समझ सकते हैं सत्य की यात्रा में साथ दें अन्यथा शांत रह सत्य की विजय यात्रा के समदर्शी बनने का आनंद ले।
No comments:
Post a Comment