
मैं खंड खंड हो
बिखरती गई।
कहीं बिखरती,
अखरने, बिखरने का
तांडव देखती रही।
मैं खंड खंड हो
बिखरती गई।
मैं स्वयं ही स्वयं में
विखंडित होती गई।
ना घमंड
ना उद्दंड
ना प्रचंड
न ही पाखंड,
कालखंड के फंद से
दंडित मैं
स्वयं से स्वयं में बिखरे
खंड खंड को
निरर्थक मापदंडों को
प्राणदंड देती मैं,
हो गई अखंड
एक ही मेरा
अखंड स्वरूप
सत्य से प्रेम,
प्रेम से कर्म,
सत्य, प्रेम, कर्म से
प्रवाहित प्रकाश।
अखंड प्रकाश।
प्रकाश की रज
'रेणु'
मनमोहन, मानस में
सत्य प्रसंग को प्रणाम करती रेणु
प्रणव की ओर अग्रसर रेणु।
रेणु से रेणुका भई रेणु।
सत्यमेव जयते।
सदी का महासंदेश:- सत्य से प्रेम, प्रेम से कर्म करें।
प्रसंग प्रणाम से प्रणव तक सत्य की विजय यात्रा में भाग लें।
रेणु वशिष्ठ
मेरी काया मेरी वेधशाला से
10.03.2025
(नोट:- रेणुका विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी की माता हैं। रेणु प्रसंग की माता है। संसार को असत्य विहीन करने के लिए हमें परशुराम जी जैसा बल प्राप्त होता रहे यही प्रार्थना है देवी रेणुका से)
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