क्या हम किसी की अपेक्षाओं को पूरा कर सकते हैं?
अपेक्षाएं हमेशा जरूरत से ज्यादा लंबी चौडी होती हैं. विचार करें.
मूल्य, समय, अपेक्षा
आपने जो दिया
सामने वाले ने उसे जितना माना
जितना दिया गया है उसे उतना कभी नही आँका जाता है. अधिकतर कम ही आँका जाता है.
हम अपनी नाखुशी के लिए अपने साथी को क्यों दोषी ठहराते हैं. हम उससे क्यों आशा उम्मीद करते हैं कि वह हमारे अनुसार सारे कार्य करेगा. कभी कभी तो बिना अपनी इच्छा को जाहिर किये ही हम धारणा बना लेते हैं कि अमुक व्यक्ति हमारे लिए इस प्रकार का काम करेगा. सामने वाले को चाहे पता ही ना हो तो वह कैसे आपकी अपेक्षा पर खरा उतरेगा.
यदि आप किसी से कुछ आशा नही रखते तो कभी निराश नही होते हैं.
यदि आप लोगो को अपने माप दंडों के अनुसार दक्ष, होने की आशा छोड़ देते हैं तो आप उन्हे जो कुछ वे हैं उसे ही पसंद करने लगते हैं.
हम इस दुनिया मे अपने माता पिता के अलावा किसी की आकांशाओं या अपेक्षाओं के अनुसार जीने के लिए पैदा नही हुए हैं, ना ही कोई और हमारी. सबकी अपनी अपनी जीवन यात्रा है. अपने को अपनी अपेक्षा आकांक्षा पर खरा साबित कर लो वही बहुत है. दूसरे की आशा निराशा के नाप तौल से जीना या जीने देना सर्वदा अनुपयुक्त है.
यदि हम दूसरे की आशानुरूप जीने का प्रयास करते हैं तो एक दिन यह भूल जाते हैं कि हम स्वयं क्या हैं.
कितनी अपेक्षा /आशा करें?
अपेक्षा/आशा करें या ना करें?
आप दुसरों से उतने समर्पण की अपेक्षा नही कर सकते जितना स्वयं मे है. आप आप हैं और वे वे हैं. सबकी व्यक्तिगत भिन्नताएं होती हैं.
खुश रहने के आपको दो कारण मिल सकते हैं.
1. या तो वास्तविकता को स्वीकार कर लें.
2. या अपनी आशाओं अपेक्षाओं को थोड़ा नीचे कर ले.
आशा अपेक्षा किससे की जाए?
आशा अपेक्षा सिर्फ स्वयं से की जाए.
आशा अपेक्षा सिर्फ अपने आप से क्यों की जाए? क्योंकि आपकी आशा अपेक्षा पूरी हो सके. क्योंकि स्वयं का व्यवहार स्वयम के हाथ मे है. दूसरे के व्यवहार पर हमारा कोई नियंत्रण नही होता.यदि आप वो कहना चाहते हैं जो आप कहना चाहते हैं तो आप वो सुनेंगे जो आप सुनना नही चाहते हैं.
अपनी प्रस्तुति के समय अपनी अपेक्षाओं को नीचे गिराओ. स्वयं से की गयी अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए अपनी प्रस्तुति को ऊंचा उठाओ.
Look beyond imperfections
Be 'PRASANG' Be Joyous
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