यदि दिखावे से बचें और सहज सरल तरीके से बच्चे का लालन पालन किया जाए तो खर्चा भी घटेगा और बच्चे का विकास भी स्वाभाविक होगा।
परिवार बच्चे की पहली पाठशाला होता है, परिवार को महत्ता दें। बच्चे को परिवार के बीच पलने दें। बहुत सारे खर्चे बचेंगे।
जब डायपर्स नहीं होते थे बच्चों को टॉयलेट ट्रेनिंग समय पर दी ही जाती थी। बच्चा तो मल मूत्र विसर्जन करने से पहले अपने हाव भाव से व्यक्त करता है , हां माता पिता या जो भी बच्चे की संभाल कर रहा है उसे समझना होता है।
डायपर में भी बच्चा संकेत देता है, माता पिता समझ भी जाते हैं और सब जगह ऐसे ही लेकर घूमते रहते है, अपनी सहूलियत के समय में ही डायपर चेंज करते है। रात की नींद कौन खराब करे, पूरी रात के लिए डायपर लगा दो, चैन से सोओ।
परिवार के बीच बच्चा अपनी संस्कृति से संबंधित बहुत सी गतिविधियां सीखता है, extra curricular activities का खर्चा बचता है।
Know the cost of raising a child in India जैसे लेख युवा पीढ़ी को डरा रहे हैं, ये सब कैलकुलेट करके वो समय पर बच्चा पैदा नहीं कर रहे। पहले कमाएंगे फिर......
तब तक उम्र निकल जा रही है। दादा दादी बनने की उम्र में माता पिता बन रहे हैं इस भौतिक युग में।
बच्चों को पालने के लिए दिखावे से बचें, अपने आराम का त्याग करने के लिए तैयार रहें तो आप कम खर्च में भी बच्चों का संपूर्ण आनंद के साथ लालन पालन कर सकते है।
बच्चे प्रकृति का सबसे खूबसूरत देन हैं। बच्चों पर खर्च नहीं किया जाता , बच्चों में इन्वेस्ट किया जाता है।
Invest on the children, complimented with investment 'in' the children..... investment on gives outer prosperity, investment in gives inner prosperity....(Swami Chinmayananda)
investment in? values and culture....
परिवार ही संस्कारशाला है। बच्चों को परिवार का परिवेश दे।
युवा लोग इस प्रकार के आर्थिक विश्लेषण देखकर भ्रमित ना हो। इस संसार में कम से कम और अधिक से अधिक में भी आनंद से जीया जा सकता है। सभी के लिए पर्याप्त है, जो प्राप्त है वहीं पर्याप्त है।
सत्य से प्रेम, प्रेम से कर्म करें
प्रसंग प्रणाम से प्रणव तक सत्य की विजय यात्रा में भाग लें
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