सुदर्शन चक्र ही तो चल रहा....... समय की गति मे, भावना की मति में, स्थान की परिस्थिति में.
जब तक भाव के चक्र व्यूह से बाहर नहीं आयेंगे तब तक स्थिति परिस्थिति मे जकड़े रहेंगे।
भाव विचार मे या विचार भाव मे कहाँ, कैसे एक दूसरे से बंधे रहते हैं, उन्हे कैसे अलग करें? कोनसा चक्र चलाये कि उनका बंधन कट जाए (बंधन जन्मो के होते हैं। याद रखे अच्छे बुरे की पहचान के साथ ही बंधन काटें)
बंधन को को काटने के लिए विष्णु का चक्र ही कारगर होता है, अब वह राम नाम मे हो या कृष्ण नाम मे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
ये कैसे काम करता है? ध्यान से समझे,
विचारों को हम मन मान लेते है और उनमे उलझे रहते हैं।
ध्यान दें,
विचारों का आधार (base) मन है।
मन की स्थिति मे विष्णु नाम रूपी चक्र को राम नाम या कृष्ण नाम मे रखे जैसे विष्णु ने अपनी अंगुली पर धारण कर रखा है। जब जरूरत हो उपर उठकर वो विचारों को काट कर अपने जगह वापिस आकर स्थित हो जाए (शायद गीता के दूसरे अध्याय मे बताया गया स्थित प्रज्ञ का concept भी यही कहता है, मेरी समझ मे)
मनस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले।
मनस्थिति बदले तो विचार बदले, विचार बदले तो भाव बदले, भाव बदले तो नज़रिया बदले, नज़रिया बदले तो परिस्थिति बदले।
परंतु ये सब आसान तो नही क्योंकि कई जन्मो के बंधन मे अटके रहते हैं।
आसान बनाने का एक ही सॉफ्ट वेयर है विष्णु के किसी भी नाम से जुड़ जाना, चाहे कृष्ण कहो या राम, जग मे सुंदर हैं दो नाम।
करके देखे, प्रयोग और अनुभव।
मेरी काया मेरी वेधशाला से
रेणु वशिष्ठ
@Kumud Midha I think you have got your answer here.
No comments:
Post a Comment