Wednesday, November 9, 2022

सुदर्शन चक्र



 सुदर्शन चक्र ही तो चल रहा....... समय की गति मे, भावना की मति में, स्थान की परिस्थिति में.

जब तक भाव के चक्र व्यूह से बाहर नहीं आयेंगे तब तक स्थिति परिस्थिति मे जकड़े रहेंगे।
भाव विचार मे या विचार भाव मे कहाँ, कैसे एक दूसरे से बंधे रहते हैं, उन्हे कैसे अलग करें? कोनसा चक्र चलाये कि उनका बंधन कट जाए (बंधन जन्मो के होते हैं। याद रखे अच्छे बुरे की पहचान के साथ ही बंधन काटें)
बंधन को को काटने के लिए विष्णु का चक्र ही कारगर होता है, अब वह राम नाम मे हो या कृष्ण नाम मे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
ये कैसे काम करता है? ध्यान से समझे,
विचारों को हम मन मान लेते है और उनमे उलझे रहते हैं।
ध्यान दें,
विचारों का आधार (base) मन है।
मन की स्थिति मे विष्णु नाम रूपी चक्र को राम नाम या कृष्ण नाम मे रखे जैसे विष्णु ने अपनी अंगुली पर धारण कर रखा है। जब जरूरत हो उपर उठकर वो विचारों को काट कर अपने जगह वापिस आकर स्थित हो जाए (शायद गीता के दूसरे अध्याय मे बताया गया स्थित प्रज्ञ का concept भी यही कहता है, मेरी समझ मे)
मनस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले।
मनस्थिति बदले तो विचार बदले, विचार बदले तो भाव बदले, भाव बदले तो नज़रिया बदले, नज़रिया बदले तो परिस्थिति बदले।
परंतु ये सब आसान तो नही क्योंकि कई जन्मो के बंधन मे अटके रहते हैं।
आसान बनाने का एक ही सॉफ्ट वेयर है विष्णु के किसी भी नाम से जुड़ जाना, चाहे कृष्ण कहो या राम, जग मे सुंदर हैं दो नाम।
करके देखे, प्रयोग और अनुभव।
मेरी काया मेरी वेधशाला से
रेणु वशिष्ठ
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Renu Vashistha

Tuesday, November 1, 2022

जीयें तो जीये कैसे?

 जी यें तो जी ये कैसे? 

Take out time for your own life. 

जिंदगी कितनी आसान थी जब हम मां की कोमल गोद मे थे. ना किसी बात की फिकर ना चिंता. सुरक्षित अति सुरक्षित. पर उस सुरक्षा के घेरे मे हम प्रसन्न थे क्या? 
नही उस क्षण उस नरम अहसास का मान ना कर हम उछल उछल kare, लटक लटक कर नीचे उतर कर अपनी राह चुनना चाहते थे. शायद कुछ नया ढूंढना चाहते थे? 
सोचते थे इस गोद से उतरकर जब जमाने मे जायेंगे तो हमे कुछ अधिक सुख आनंद स्वतंत्रता प्राप्त होगी. वो दिन भी आया जब मां ने जाना अब हमे जमीन पर बैठना चाहिए. नरम गोद नरम बिस्तर छूटे. ठंडे गरम फ़र्श पर बैठना अच्छा लगने लगा.
कंफ्यूशियास.... जीवन अति सरल परंतु हम इसे जटिल बना लेते हैं.
ऐसा लगता है जैसे जैसे हम उम्र दराज होते है वैसे वैसे समय पंख लगा कर उड़ने लगता है. दिन सप्ताह महीने साल ऐसे भागते हैं जैसे कोई जेट इंजन लगा हो. क्या कारण है? 
मै ही ऐसा सोचती हूँ या आपको भी ऐसा लगता है. शायद लगता ही होगा, प्रकृति ने हमे एकसार ही तो बनाया है.
क्यो होता है ऐसा? 
किसलिए होता है, कैसे होता है? 
जवाब खोजना आसान तो नही क्योंकि समय की गति मे अंतर इतना तीव्र नही होता. वही सेकेंड, वही मिनिट, वही दिन, सप्ताह, महीने, साल आदि आदि.
घडी की टिक टिक एक ही गति से चलती है. जवाब ढूंढने निकले तो शायद सभी के जवाब अलग अलग होंगे क्योंकि परिस्थितियाँ सभी की अलग अलग हैं तो अनुभव अलग हैं.
अनुभव अलग है तो अभिव्यक्ति अवश्य ही अलग होगी. कहीं कहीं परिस्थिति व अनुभवों मे थोड़ी बहुत समानता हो सकती है परंतु माइंड सेट अलग अलग हो सकता है. खैर होता रहे. दूसरों की दुसरे जाने, हम तो अपनी जाने
हमे तो लगता है उम्र के साथ जीवन से अपेक्षाएं बहुत हो जाती है. पीछे मुड़कर देखते हैं तो लंबा जीवन रास्ता पार किया. कितना समय बर्बाद कर दिया, उपलब्धि ऐसी कोई खास नही.
अधिकतर अपनी उपलब्धि को लोग कम ही आंकते है क्योंकि स्वयं की तरफ गौर करके कभी देखते नहीं.
समय भागता हुआ इसलिए मालूम देता है क्योंकि हमारे engagements बहुत हो जाते हैं. जो समय पहले सिर्फ मेरे लिए होता था अब अन्य लोगो के साथ बंट गया है.
समय आपके पास उतना ही है परंतु आपका समय  बांटने वाले बढ़ गए तो समय की गति क्या करेगी? 

हम क्या है?

 हम क्या है, कोई बहुत बड़ा प्रश्न नही है. प्रश्न पढ़ने वालों को हैरानी हो रही होगी कि ये भी कोई पूछने की बात हुई कि हम क्या हैं? 

अरे वही हैं जो ईश्वर ने हमे बनाया है और क्या हैं? 
आप भी वही है, मै भी वही हुँ और आपके और मेरे आस पास के सभी लोग वही हैं. अरे भाई इंसान हैं और क्या? 
ईश्वर ने इंसान ही तो बनाकर भेजा है हमे इस कायनात मे.
ना जाने कितने तरहों के सांचों मे से निकालते ढालते ढालते हमे इस इंसान रूपी नाम के सांचे मे ढले हैं तो इंसान ही तो हैं और क्या? 
अरे भाई बिदकिये मत, मेरे कहने का मतलब यह नही था कि आप इंसान नही हैं. आप तो सौ प्रतिशत इंसान ही हैं. तभी तो आप इसे पढ़ पा रहे हैं अन्यथा गाय बकरी होते तो पढ़ थोड़ी पाते. हाँ काग़ज़ को चबाकर हजम अवश्य ही कर जाते.
अरे आप तो झुंझलाने लग गए, जरा ठहरिये, समझिये, धीरज रखिये. मेरे कहने का मतलब सिर्फ ये है कि क्या आप वही इंसान हैं जिसे ईश्वर ने स्वयं सा एक शुद्ध रूप देकर इस धरा पर किसी उद्येश की पूर्ति हेतु भेजा था.
उद्येश व्युध्येश् मै नही जानता परंतु इतना अवश्य जानता हूँ कि मेरे माता पिता मुझे इस दुनिया मे मुझे लेकर आये हैं. माता पिता के पास किसने भेजा? 
कौन भेजेगा? मैंने स्वयं इसका चुनाव किया है..... 

शत्रुओं के अहसांमन्द् बने

 

सहन शीलता, सौम्यता, धैर्य, धीरज बनाये रखना, हर परिस्थिति मे, परंतु कैसे व क्यों? 

हर कठिन परिस्थिति हमारी परिक्षा की घडी होती है. कठिन परिस्थिति के उत्पन्न होने पर ही हम धैर्य की उपयोगिता व महता को जान सकते हैं. अपने मे इनकी मात्रा को बढ़ाने का अभ्यास कर सकते हैं.

कठिनाई की परिस्थिति हमारे जीवन मे कौन पैदा करता है? 
हमारे मित्र या शत्रु. निसंदेह शत्रु और यदि मित्र कठिन परिस्थिति पैदा करते हैं तो वे भी उस समय हमारे शत्रु समान ही होते है. तो यदि हम सही मायने में कुछ सीखना चाहते हैं तो हमे अपने शत्रुओं को हमारा गुरु मानना चाहिए.

करुणा, दया, प्रेम का यदि अभ्यास करना चाहते हैं तो उसके लिए आपके शत्रु का होना अपरिहार्य है क्योंकि शत्रुओ के बिना धैर्य, करुणा, प्रेम, दया का अभ्यास कैसे किया जा सकता है.

मित्रों के प्रति करुणा, दया,प्रेम, स्नेह रखना कोई मुश्किल नही क्योंकि उनके तो सौ खून माफ किये जा सकते हैं परंतु शत्रु तो आँख में खटकता है उसकी तो उपस्थिति ही आपके धैर्य, प्रेम, करुणा, दया सबको उड़न छु कर देती है. यदि आपको कोई पैमाना चाहिए कि सही मे आप मे धैर्य है, प्रेम, करुणा, दया है या नही तो आप शत्रु की उपस्थिति मे कैसा महसूस करते हैं, उससे आपको मालूम चल जायेगा.

हमे शत्रुओं का अहसनमंद होना चाहिए क्योंकि वे हमारे शांत दिमाग को बनाये रखने मे मददगार होंगे. असली अभ्यास शांति या धैर्य का शत्रु की उपस्थिति से ही हो सकता है.