Thursday, September 30, 2021

विष अमृत का खेल

विष अमृत का खेल सदियों पुराना  रहा होगा, यह तय है क्योंकि मेरी मां  व् मां  की मां से भी मैंने  इस खेल के बारे मे सुना है. जब वो मुझसे अपने बचपन की यादें साझा करती थी.
विष अमृत की बेल चली रही थी नानी से मां और मां से हम बच्चों मे.
विष अमृत खेलने का आनंद जब याद करती हूँ तो बचपन मे अनुभव हुए आनंद की लहरे आज भी हिलोरे लेने लगती हैं. एक अहसास अमृत सा अवतरित होता है. आस पड़ोस के बच्चे भाई बहिन इक्कठे हो मुहल्ले की सड़क पर या घर के पिछवाडे वाले बाड़े मे या आगे बने नरम घास के बगीचे मे. नंगे पैर हो या जूते जुराब पहने, कुछ होश नहीं. ना सड़क के कंकर पत्थर चुभते ना बाड़े के कांटे और ना ही नरम घास का अहसास होता, बस होता था तो आनंद सिर्फ विष अमृत का. जिसका कोई अर्थ मालूम नहीं था, सिर्फ खेलने का आनंद था.
खेल खेल मे ही विष अमृत ने कितने जीवन मूल्य दे दिये आज समझ आता है.
विष मृत्यु है तो अमृत जीवन.
विष अमृत खेल मे कितने भी बच्चे खेल सकते हैं. एक बच्चा जिसमे डाइम्/दंश होती है वह हाथ लगाकर अन्य बच्चों को विष करता है. जिसको विष कर दिया वह अपनी जगह बैठा रहेगा हिल नहीं सकता. अन्य उसके  साथी जिनके पास अमृत है उसे हाथ लगाकर अमृत कर जिंदा करते हैं. अमृत हो जाने पर वह खेल में फिर से शामिल हो जाता है.
आजकल विष अमृत का रूप स्टेचू  स्टेचू ने ले लिया है. इसे फ्रीज एंड मेल्ट के रूप मे भी देखा जा रहा है.
परंतु विष अमृत नाम अद्भुत अर्थ लिए हुए है. विष हो जाने पर आप आगे नहीं बढ़ सकते जबकि स्वतंत्रता हर जन का अभीष्ट होता है. ये अनुभव देता है कि हम रुकने के लिए नहीं बने हैं. हमे चलना है, हमे जिंदा रहना है. विष होकर बैठे नहीं रहना है.
साथियो की ओर हाथ बढ़ाते हैं. हमे अमृत कर दो. वो बचपन की बात थी, बड़े होने पर मैंने जाना कि विष अमृत का खेल मेरे विचारों में ही चलता रहता है. मैं स्वयम को अपने विचारों से ही कभी विष कभी अमृत कर देती हूँ.
जब विष अमृत अंदर चलता है तो वह बाहर भी प्रतिबिंबित होता ही होगा, वाजिब है. हो सकता है जब विचार एक्शन में आने लगते है तो आस पास के लोगो के साथ विष अमृत का खेल हो जाता है, चाहते हुए भी.
जो अंदर है वो भर जाने पर उगल कर बाहर तो आयेगा ही, तय है. विष अमृत जो उगल कर बाहर आता है वैसा  महौल रच जाता है.
जिस प्रकार विष हो जाने वाला बच्चा अन्य साथियों की ओर लालसा से देखता है अमृत् पाने के लिए, उसी प्रकार क्या हम अपने विचारों से स्वयं विष होकर नहीं चाहते कि कोई हमें अमृत् करे. मन के एक कोने में ये इच्छा जरूर होती है.
विष- नाराजगी मे है, काम, क्रोध, लोभ, मोह में है.
अमृत- माफी मे है, भूलने मे है, प्यार मे है  अपनेपन में है, सकरत्मकता मे है.
विष- दुर्गंध है, अवनति है, दुख है, शत्रु है, अपमान है, सजा है, कैद है, रोना है, निराशा है.
अमृत- खुशबु है, उन्नति है, सुख है, मित्र है, मान सम्मान है, आजादी है, हँसना है.
 विष को अमृत मे परिवर्तित करें जीवन को अमृतानंद बनाये.
परंतु कैसे?

जीवन धारा मे विष तो मिलेगा ही. हर समय विष की धारा नहीं बहती है. जीवन में अमृत धारा अधिक होती है, विष धारा को अमृत धारा में मिलाकर अमृत करें. अमृत धारा मे विष धारा का संगम बनाने के लिए धैर्य की, संतोष की, आशा की, मौन की, शांति की आवश्यकता है.
जब विष धारा तीव्र वेग से चल रही हो, बच्चों के समान शांत चित बैठे रहे, अमृत धाराएँ चारों ओर से आपकी मदद के लिए आपकी ओर आती है जैसे खेल मे विष हुए बच्चे को अमृत करने के लिए चारों ओर से बच्चे उसकी ओर बढ़ते हैं, स्वयं विष ना हो जाये, उससे बचते हुए  वे आपकी ओर बढ़ते हैं और आपको अमृत करते हैं.
जीवन विष अमृत का खेल है. कभी आप अन्य लोगो के साथ खेलते हैं. कभी स्वयं के साथ खेलते है.
विष अमृत का असल खेल अब समझ आया. बचपन मे खेला विष अमृत, जीवन की अमृत धारा बन गया.
भरोसा प्रभु पर गया, स्वयं की गलती से भी यदि विष हो गए तो भी वो अमृत लेकर तुरंत चारों ओर से अपने बंदो को तेरी मदद के लिए भेज देगा.

Renu Vashistha

22 अगस्त 2016


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