प्रणाम,
धन्यवाद#imbibevalues #buildcharacter #BuildNation #nochildleftbehind #nochildleftout #vishvgurubharat
Be ‘PRASANG’ (Positive, Responsible, Ambitious, Supportive, Abreast, Noble,Generous) Be JOYOUS Emotional Well Being movement to lead a happy, joyful life.never feel guilt about learning and wisdom. Believe_ This day is not a mistake, you have made all the right choices, you know more than you knew this day. Cease_ guilt, mockery of sadness in self, burdening yourself, placing blame on others.
प्रणाम,
सु means शुभ, ख means स्थान = सुख
25.8.2024
प्रणाम
आज का प्रसंग
मैं और मेरा परिवार,
मैं हूं तो मेरा परिवार है। परिवार है तो मैं हूं। परिवार बिना अस्तित्व कहां?
करता था विचरण, यूं ही, इधर उधर, स्वच्छंद, खिलंदड़, लिए अपनी ज्योति। अपने साथ मिल जाए कोई दीपक कोई बाती तो ज्योत बन अपने प्रकाश से तज दूं अंधकार समस्त।
अपनी ज्योत को सघन किया स्थिर हुआ।इक दीपक इक बाती धरा पर तैयार हुआ।
दो परिवार मिल लाए इक दीपक इक बाती। आनंदित परिवार, आनंदित दीपक बाती।
प्रेमर्पण की ऊर्जा ने चास दी बाती।
ज्योत से ज्योत जग गई।
ज्योत को मिला परिवार, भाई बहिन का प्यार।
जगमग जगमग करते सभी पिता सूर्य तो मत धरती, भाई मेरे राजकुमार से बुध।
ग्रह नक्षत्र से चारों ओर। सौर मंडल सा मेरा परिवार। प्रक्रिया बढ़ती गई, एक से अनेक सौर मंडल बन गए। सभी के अपने अपने मंडल, अपने अपने पथ।
सभी ज्योत अस्तित्व आई तो निराकार से आकार ले लिया, आकाश से धरा पर रूप धरा। सघन हुई अपने आस्तित्व को अपनी सघनता के आवरण में ढक लिया। दीपक बाती का रूप लिया। माता पिता बनी। ज्योत से ज्योत जगती गई। कभी दीपक कभी बाती और कभी ज्योत।
ज्योत कभी जड़ तो कभी चेतन कायखेल खेलती ही रहती है, शब्द, रूप,रस,गंध,स्पर्श के पांच तत्वों से पंच कोषों, सप्त धातुओं आदि आदि में नटराज बन नृत्य करती ज्योत।
सत्यम शिवम सुंदरम का प्रत्यक्षीकरण करती ज्योत।
आज के प्रसंग पर आते हैं
हम सभी किसी ना किसी परिवार की सिर्फ एक इकाई मात्र हैं।उस इकाई को हम मै ही मैं का रूप दे अहंकारी हो जाएं तो आपकी ज्योति ज्वाला बन आपको भस्म करती है।
अहंकार को गलाकर रज कण (रेणु)भर अपनी ज्योत के ले तो आप विराट के साथ एकाकार होने की प्रक्रिया में अग्रसर होने लगते हैं। परिवार के सभी सदस्यों को मान सम्मान दें। सूर्य तो अपने तेज से अपने सौर परिवार के सदस्यों को भस्म नहीं करता।सभी को प्रकाशित करता है।
अपनी ज्योति को ज्वाला नहीं सूर्य सा तेज दें। प्रकाश दें, प्रकाशित करें व हो।
यदि ऐसा नहीं करते तो क्या करते है?
परिवार का विघटन।
पहले खुद टूटते है (ये जानते नहीं) बिखर कर बड़ा नहीं हुआ जाता ये समझते नहीं।
ज्योति ज्वाला बनती है, बाहर निकलती ही, दीवारें तोड़ती हैं, बंद दरवाजों के ताले तोड़ती है, संकीर्ण होती जाती है, परिवार को रोशन कर रहीं नई ज्योतियों को फूंक मारती है, और ना जाने क्या क्या?
व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज, समाज से देश, देश से संसार, संसार से भूमंडल, भूमंडल से उच्च सात लोक भू, भुवस, स्वर, महा, जन, टैप्स और सत्य।
भूमंडल से नीचे अतल, प्राण, सुतल, रसातल, तलातल, महातल, पाताल और नरक। पुराणों और अथर्ववेद में बताए गए।
सभी लोकों में ज्योत अपने दीपक बाती का चुनाव कर सकती है।
भूलोक में हमने परिवार का चुनाव किया है। हम जिस भी परिवार में हैं हमारा ही चुनाव है। आगे किस लोक में जाना है अपनी ज्योत को स्थिर करें और विचार करें।सबसे उच्च लोक सत्य है और सबसे निम्न लोक नर्क।
समय रहते सही चुनाव कर ले न जाने कब अगला परिवार, लोक, आपको बुला ले।
सदी के महा संदेश, सत्य से प्रेम, प्रेम से कर्म करे।
श्रमेव जयते
सत्यमेव जयते
प्रसंग प्रणाम से प्रणव तक सत्य की विजय यात्रा में भाग लें।
25.8.24