सुखद प्रभात है
बाहर बहुत दिखावे करते रहते है आदर्श के,
भीतर लोभ मोह मद बनते है, करें अपकर्श के।
कथनी और करनी में होता क्या ना कभी उत्पात है।
क्या कठोर अपने प्रति, औरो के प्रति रहे उदार हम।
कर भी पाए क्या अपनी से प्रेमभरा व्यवहार हम।
किया उचित के निर्धारण का क्या हमने अभ्यास है।
कर भी लिया किन्तु क्या उस पर किया अडिग विश्वास है।
सबल पांव ही टिकते है, जब आता झंझवत है।
शैली उच्चतर हो, तो फिर निश्चित सुखद प्रभात है।
बाहर बहुत दिखावे करते रहते है आदर्श के,
भीतर लोभ मोह मद बनते है, करें अपकर्श के।
कथनी और करनी में होता क्या ना कभी उत्पात है।
क्या कठोर अपने प्रति, औरो के प्रति रहे उदार हम।
कर भी पाए क्या अपनी से प्रेमभरा व्यवहार हम।
किया उचित के निर्धारण का क्या हमने अभ्यास है।
कर भी लिया किन्तु क्या उस पर किया अडिग विश्वास है।
सबल पांव ही टिकते है, जब आता झंझवत है।
शैली उच्चतर हो, तो फिर निश्चित सुखद प्रभात है।
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